‘‘मम्मी, जल्दी यहां आओ,’’ अपनी बहू शिखा की ऊंची आवाज सुन कर आरती तेजी से चलती रसोई में पहुंचीं.
‘‘क्या हुआ है?’’ यह सवाल पूछते हुए उन का दिल तेजी से धड़क रहा था.
‘‘बेसन में नमकमिर्च और दूसरे मसाले कितनेकितने डालूं?’’
‘‘बस यही जानने के लिए तुम ने इतनी जोर से चिल्ला कर मुझे बुलाया है?’’
‘‘क्या मैं बहुत जोर से चिल्लाई थी?’’ शिखा शर्मिंदा सी नजर आने लगी.
‘‘मुझे तो ऐसा ही लगा था जैसे तुम किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई होगी,’’ आरती नाराज हो उठीं.
‘‘आई एम सौरी, मम्मी,’’ शिखा फौरन उन के गले लग गई.
‘‘छोटीछोटी बातों से घबरा कर अपना आत्मविश्वास क्यों खो देती हो, बहू? अरे, अगले सप्ताह तुम्हारी शादी को पूरा 1 साल हो जाएगा. घर के बहुत से काम तुम ने सीख लिए हैं. उन्हें बिना किसी की सहायता के अपनेआप करने की आदत डालो,’’ आरती ने नाराजगी भुला कर उसे प्यार से समझाया.
‘‘आप या सौम्या दीदी साथ में खड़ी रहती हो, तो मेरा आत्मविश्वास बना रहता है. आप दोनों से तो मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है.’’
‘‘मैं साथ में खड़ी हूं, पर सारे मसाले अपने हाथ से बेसन में तुम ही डालो. आज तारीफ करवाने लायक पकौड़े सब को खिलाओ.’’
‘‘जी,’’ शिखा छोटी बच्ची जैसे अंदाज में बोली. फिर काम में जुट गई. शिखा के ससुर उमाकांत, ननद सौम्या और पति समीर को आरती ने ड्राइंगरूम में 10 मिनट बाद जब अपनी बहू के चिल्ला कर उन्हें बुलाने का कारण बताया, तो तीनों हंस पड़े.
‘‘घर के कामों में तो बहू ढीली है, पर जोश की कोई कमी नहीं है उस में. हम में से कोई अभी तक नहाया भी नहीं है और वह नहाधो कर पकौड़े बना रही है,’’ उमाकांत ने अपनी बहू की एक तरह से तारीफ ही की.