‘‘इतना कुछ कह दिया बूआ ने, आप एक बार बात तो करतीं.’’
‘‘मधुमक्खी का छत्ता है यह औरत, अपनी औकात दिखाई है इस ने, अब इस कीचड़ में कौन हाथ डाले, रहने दे स्नेहा, जाने दे इसे.’’
मीना ने कस कर बांह पकड़ ली स्नेहा की. उस के पीछे जाने ही नहीं दिया. अवाक् थी स्नेहा. कितना सचझूठ, कह दिया बूआ ने. इतना सब कि वह हैरान है सुन कर.
‘‘आप इतना डरती क्यों हैं, चाची? जवाब तो देतीं.’’
‘‘डरती नहीं हूं मैं, स्नेहा. बहुत लंबी जबान है मेरे पास भी. मगर मुझे और भी बहुत काम हैं करने को. यह तो आग लगाने ही आई थी, आग लगा कर चली गई. कम से कम मुझे इस आग को और हवा नहीं देनी. अभी यहां झगड़ा शुरू हो जाता. शादी वाला घर है, कितने काम हैं जो मुझे देखने हैं.’’
अपनी चाची के शब्दों पर भी हैरान रह गई स्नेहा. कमाल की सहनशीलता. इतना सब बूआ ने कह दिया और चाची बस चुपचाप सुनती रहीं. उस का हाथ थपक कर अंदर चली गईं और वह वहीं खड़ी की खड़ी रह गई. यही सोच रही है अगर उस की चाची की जगह वह होती तो अब तक वास्तव में लड़ाई शुरू हो ही चुकी होती.
चाची घर के कामों में व्यस्त हो गईं और स्नेहा बड़ी गहराई से उन के चेहरे पर आतेजाते भाव पढ़ती रही. कहीं न कहीं उसे वे सारे के सारे भाव वैसे ही लग रहे थे जैसे उस की अपनी मां के चेहरे पर होते थे, जब वे जिंदा थीं. जब कभी भी बूआ आ कर जाती थी, पापा कईकई दिन घर में क्लेश करते थे. चाचा और पापा बहुत प्यार करते हैं अपनी बहन से और यह प्यार इतना तंग, इतना दमघोंटू है कि उस में किसी और की जगह है ही नहीं.
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