राइटर-  भावना केसवानी

‘‘सच ही तो है. हर इंसान अपने लिए खुद ही जिम्मेदार होता है. दुनिया कहां पहुंच गई और ये लोग अपनी पुरानी सोच के वजह से पिछड़े ही रह गए. अफसोस तो इस बात का है कि इन की ऐसी मानसिकता के कारण इन के बच्चों का जीवन भी बरबाद हो जाता है,’’ कमरे में घुसते ही रेवा बड़बड़ाने लगी.

औफिस के लिए तैयार हो रहे पराग ने मुड़ कर रेवा की ओर देखा, ‘‘क्या हुआ? मेरे अलावा अब और किस की शामत आई है?’’

‘‘पराग, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. मैं तो सीता के बारे में सोच रही थी. शोभा को कितना समझ रही हूं. मगर वह तो उस की शादी करने पर तुली हुई है. अरे, अभी सिर्फ 16 की ही तो है. इतनी कच्ची उम्र में शादी कर देंगे, फिर जल्दी 3-4 बच्चे हो जाएंगे और फिर झाड़ूपोंछा, चौकाबरतन करते ही उस की जिंदगी कब खत्म हो जाएगी, उसे खुद भी पता नहीं पड़ेगा. कितना कह रही हूं कि लड़की छोटी है, थोड़ा रुक जाओ पढ़ना चाहती है तो पढ़ने दो... जो मदद चाहिए होगी मैं कर दूंगी पर नहीं... लड़की ज्यादा बड़ी हो जाएगी तो शादी में मुश्किल होगी... हुंह, रेवा, मेरे पास एक आइडिया है. तुम मेड लिबरेशन ऐसोसिएशन बनाओ और उस की प्रैसिडैंट बन जाओ. तुम्हारे जैसी कुछ और औरतें मिल जाएंगी तो सीता ही क्यों, सारी मेड्स की समस्याओं का समाधान मिल जाएगा. रेवा प्लीज... यू मस्ट डू इट. तुम्हारी मैनेजरियल स्किल्स भी काम आएंगी और फिर इतनी कामवालियों का उद्धार कर के तुम्हें कितना पुण्य मिलेगा... सोचो जरा.’’

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