‘‘मां, मुझे क्यों मजबूर कर रही हो? मैं यह विवाह नहीं करूंगी,’’ नीलम ने करुण आवाज में रोतेरोते कहा. ‘‘नहीं, बेटी, यह मजबूरी नहीं है. हम तो तेरी भलाई के लिए ही सबकुछ कर रहे हैं. ऐसे रिश्ते बारबार नहीं आते. आनंद कितना सुंदर, सुशील और होनहार लड़का है. अच्छी नौकरी, अच्छा खानदान और अच्छा घरबार. ऐसे अवसर को ठुकराना क्या कोई अक्लमंदी है,’’ नीलम की मां ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
‘‘नहीं, मां, नहीं. यह कभी नहीं हो सकता. मां, तुम तो जानती ही हो कि मैं गठिया रोग से पीडि़त हूं. हर तरह का इलाज कराने पर भी मैं ठीक नहीं हो पाई हूं. उन्होंने तो बस मेरा चेहरा और कपड़ों से ढके शरीर को देख कर ही मुझे पसंद किया है. क्या यह उन के साथ विश्वासघात नहीं होगा?’’ नीलम ने रोंआसा मुंह बनाते हुए कहा.
मां पर नीलम की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह तनिक भी विचलित नहीं हुईं. वह तो किसी भी तरह नीलम के हाथ पीले कर देना चाहती थीं.
जब नीलम सीधी तरह मानने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने डांट कर उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुझे मालूम है कि तेरे पिता नहीं हैं. भाई भी अमेरिका में रंगरेलियां मना रहा है. उसे तो तेरी और मेरी कोई चिंता ही नहीं है. जो पैसा था वह मैं ने उस की पढ़ाई में लगा दिया. मेरे भाइयों ने तो सुध भी नहीं ली कि हम जिंदा हैं या मर गए. राखी का भी उत्तर नहीं देते कि कहीं मैं कुछ उन से मांग न लूं.