लेखिका- शकीला एस हुसैन

सनोबर ने फर्स्ट डिविजन में बीएससी कर लिया. अख्तर एमबीए कर के एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब पर लग गया. सनोबर आगे पढ़ना चाहती थी पर उस की अम्मा आमना का खयाल था कि उस की शादी कर दी जाए. आमना ने पति सगीर से कहा, ‘‘अख्तर अब एमबीए कर के नौकरी पर लग गया है. अब आप उस के पिता जमाल से शादी की बात कर लीजिए. सनोबर को आगे पढ़ना है तो अख्तर आगे पढ़ाएगा. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग है.’’ दूसरे दिन सगीर और आमना मिठाई ले कर अपने पड़ोसी जमाल के घर गए.

सगीर ने जमाल भाई से कहा, ‘‘अब सनोबर ने ग्रेजुएशन कर लिया है. अख्तर भी एमबीए कर के नौकरी पर लग गया है. यह शादी का सही वक्त है. देर करने से कोई फायदा नहीं.’’

जमाल खुश हो कर बोले, ‘‘सगीर, तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो. बेगम, कैलेंडर ले कर आओ, सही समय देख कर हम अख्तर और सनोबर की शादी की तारीख तय कर देते हैं.’’

खुतेजा मुंह बना कर बोली, ‘‘इतनी जल्दी क्या है. मेरे भाई की बेटी की शादी तय हो रही है. पहले वह तय हो जाए. कहीं हमारी तारीख उन की तारीख से टकरा न जाए. हम अपनी तारीख बाद में तय करेंगे.’’ खुतेजा की बात पर सगीर चुप रहे. जमाल अपनी पत्नी से दबते थे. कुछ ज्यादा न कह सके.

उस दिन वे लोग नाकाम लौट आए. अख्तर, रिदा, फिजा घर में बैठे खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे. आमना ने जब बताया कि चाची ने शादी की तारीख नहीं तय की, बाद में तय करने को कहा है, तो सभी के चेहरे लटक गए.

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