दीनानाथ नगरनिगम में चपरासी था. वह स्वभाव से गुस्सैल था. दफ्तर में वह सब से झगड़ा करता रहता था. उस की इस आदत से सभी दफ्तर वाले परेशान थे, मगर यह सोच कर सहन कर जाते थे कि गरीब है, नौकरी से हटा दिया गया, तो उस का परिवार मुश्किल में आ जाएगा.
दीनानाथ काम पर भी कई बार शराब पी कर आ जाता था. उस के इस रवैए से भी लोग परेशान रहते थे. उस के परिवार में पत्नी शांति और 7 साल का बेटा रजनीश थे. शांति अपने नाम के मुताबिक शांत रहती थी. कई बार उसे दीनानाथ गालियां देता था, उस के साथ मारपीट करता था, मगर वह सबकुछ सहन कर लेती थी.
दीनानाथ का बेटा रजनीश तीसरी जमात में पढ़ता था. वह पढ़ने में होशियार था, मगर अपने एकलौते बेटे के साथ भी पिता का रवैया ठीक नहीं था. उस का गुस्सा जबतब बेटे पर उतरता रहता था.
‘‘रजनीश, क्या कर रहा है? इधर आ,’’ दीनानाथ चिल्लाया.
‘‘मैं पढ़ रहा हूं बापू,’’ रजनीश ने जवाब दिया.
‘‘तेरा बाप भी कभी पढ़ा है, जो तू पढ़ेगा. जल्दी से इधर आ.’’
‘‘जी, बापू, आया. हां, बापू बोलो, क्या काम है?’’
‘‘ये ले 20 रुपए, रामू की दुकान से सोडा ले कर आ.’’
‘‘आप का दफ्तर जाने का समय हो रहा है, जाओगे नहीं बापू?’’
‘‘तुझ से पूछ कर जाऊंगा क्या?’’ इतना कह कर दीनानाथ ने रजनीश के चांटा जड़ दिया.
रजनीश रोता हुआ 20 रुपए ले कर सोडा लेने चला गया. दीनानाथ सोडा ले कर शराब पीने बैठ गया.
‘‘अरे रजनीश, इधर आ.’’
‘‘अब क्या बापू?’’
‘‘अबे आएगा, तब बताऊंगा न?’’
‘‘हां बापू.’’