टेलीविजन का यह विज्ञापन उन्हें कहीं  बहुत गहरे सहला देता है, ‘झूठ बोलते हैं वे लोग जो कहते हैं कि उन्हें डर नहीं लगता. डर सब को लगता है, प्यास सब को लगती है.’ अगर वे इस विज्ञापन को लिखतीं तो इस में कुछ वाक्य और जोड़तीं, प्यास ही नहीं, भूख भी सब को लगती है... हर उम्र में...इनसान की देह की गंध भी सब को छूती है और चाहत की चाहत भी सब में होती है.

उम्र 65 की हो गई है. मौत का डर हर वक्त सताता है. यह जानते हुए भी कि मौत तो एक दिन सबको आती है. फिर उस से डर क्यों? नहीं, गीता की आत्मा वाली बात में उन की आस्था नहीं है कि आत्मा को न आग जला सकती है, न मौत मार सकती है, न पानी गला सकता है...सब झूठ लगता है उन्हें. शरीर में स्वतंत्र आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं लगता और शरीर को यह सब व्यापते हैं तो आत्मा को भी जरूर व्यापते होंगे. धर्मशास्त्र आदमी को हमेशा बरगलाया क्यों करते हैं? सच को सच क्यों नहीं मानते, कहते? वे अपनेआप से बतियाने लगती हैं, दार्शनिकों की तरह...

चौथी मंजिल के इस फ्लैट में सारे सुखसाधन मौजूद हैं. एक कमरे में एअरकंडीशनर, दूसरे में कूलर. काफी बड़ी लौबी. लौबी से जुडे़ दोनों कमरे, किचन, बाथरूम. बरामदे में जाने का सिर्फ एक रास्ता, बरामदे में 3 दूसरे फ्लैटों के अलावा चौथा लिफ्ट का दरवाजा है.

इस विशाल इमारत के चारों तरफ ऊंची चारदीवारी, पक्का फर्श, गेट पर सुरक्षा गार्ड. गार्ड रूम में फोन. गार्ड आगंतुक से पूछताछ करते हैं, दस्तखत कराते हैं. फोन से फ्लैट वाले से पूछा जाता है कि फलां साहब मिलने आना चाहते हैं, आने दें?

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