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शाम को घर से बाहर गए सदस्य 1-1 कर लौटने लगे. रमाकांत भी बैंक से एक मित्र के घर चले जाने के कारण शाम को ही लौटे.

सीमा से कोई भी सीधे मुंह पेश नहीं आया. उस की बात का कोईर् जवाब ठीक से नहीं दे रहा था. परेशान हो कर सीमा अपने बैडरूम में कैद हो गई.

सीमा के लिए रात का खाना तो उस की ननद व सास ने बना दिया, पर खाने का बुलावा देने उसे कोई नहीं आया. पूरे घर का माहौल मातमी हो रहा था. हरेक से डांट खा कर रोंआसा रोहित भी उस की बगल में आ लेटा.

सीमा का खाना थाली में लगा कर जब राजीव शयनकक्ष में आया तब तक रोहित सो चुका था.

‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है,’’ उदास सीमा ने ?ाठा बहाना बना कर खाना खाने से इनकार किया तो राजीव फौरन फट पड़ा.

‘‘मेरी परेशानियों को बेकार का ड्रामा कर के बढ़ाओ मत,’’ दबे क्रोध के कारण राजीव की आवाज कांप उठी, ‘‘तुम्हारी नासम?ा के कारण उधर घर वाले मु?ा से नाराज हैं और इधर तुम मु?ो परेशान करने पर तुली हुई हो. अच्छा होता अगर मैं शादी के बाद तुम्हें नौकरी करने की इजाजत ही नहीं देता.’’

‘‘मैं ने इजाजत ले कर नहीं बल्कि आप और आप के सब घर वालों के दबाव में आ कर नौकरी करी थी. मु?ो कोई शौक नहीं था घर से बाहर निकल कर परेशान होने का,’’ सीमा का स्वर ऊंचा हो गया.

‘‘मेरे घर वालों ने आज तक हर सुखसुविधा का खयाल रखा है. गृहस्थी के सभी ?ां?ाटों से तुम नौकरीपेशा होने के कारण ही बची रही हो.’’

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