सास की बिगड़ती स्थिति को देख कर तनु दुखी थी. वह मांजी को भरपूर सुख और आराम देना चाहती थी पर घर में काम इतना अधिक रहता था कि वह चाह कर भी मांजी की सेवा के लिए पूरा समय नहीं निकाल पाती थी.
जब से एक दुर्घटना में आभा के पैर की हड्डी टूटी, वह सामान्य नहीं हो पाई थीं. चूंकि आपरेशन द्वारा पैर में नकली हड्डी डाली गई थी जो उन्हें जबतब बेचैन कर देती और वह दर्द से घंटों कराहती रहतीं. कहतीं, ‘‘बहू, डाक्टरों ने मेरे पैर में तलवार तो नहीं डाल दी, बड़ी चुभ रही है.’’
दोनों बेटे उन्हें विश्वास दिलाते कि वे उन के पैर का आपरेशन दोबारा से करा देंगे, चाहे कितना भी रुपया क्यों न लग जाए.
आभा झुंझला उठतीं, ‘‘मेरे बूढ़े जिस्म को कितनी बार कटवाओगे. साल भर से यही कष्ट तो भोग रही हूं. पहले दुर्घटना फिर आपरेशन, कब तक बिस्तर पर पड़ी रहूंगी.’’
डाक्टर से जब उन की परेशानी बताई जाती तो वे आश्वासन देते कि उन का आपरेशन संपूर्ण रूप से सफल हुआ है, उन्हें धीरेधीरे सहन करने की आदत पड़ जाएगी.
आभा बेंत के सहारे धीरेधीरे चल कर अपने बेहद जरूरी काम निबटातीं, परंतु उन का हर काम बड़ी मुश्किल से होता था.
वह रसोईघर में जाने का प्रयास करतीं तो छोटी बहू तनु उन्हें सहारा दे कर वापस उन के बिस्तर पर ले आती और थाली परोस कर उन्हें वहीं बिस्तर पर दे जाती.
बेटे कहते, ‘‘मां, 2 बहुओं के होते हुए तुम्हें रसोई में जाने की क्या जरूरत है.’’
आभा दुखी स्वर में कहतीं, ‘‘कब तक बहुओं पर बोझ बनी रहूंगी.’’