Hindi Story : घर में घुसते ही चंद्रिका के बिगड़ेबिगड़े से तेवर देख रवि भांपने लगा था कि आज कुछ हुआ है, वरना रोज मुसकरा कर स्वागत करने वाली चंद्रिका का चेहरा यों उतरा हुआ न होता. ‘‘लो, दीदी का पत्र आया है,’’ चंद्रिका के बढ़े हुए हाथों पर सरसरी सी नजर डाल रवि बोला, ‘‘रख दो, जरा कपड़ेवपड़े तो बदल लूं, पत्र कहीं भागा जा रहा है क्या?’’

चंद्रिका की हैरतभरी नजरों का मुसकराहट से जवाब देता हुआ रवि बाथरूम में घुस गया. चंद्रिका के उतरे हुए चेहरे का राज भी उस पर खुल गया था. रवि मन ही मन सोच कर मुसकरा उठा, ‘सोच रही होगी कि आज मुझे हुआ क्या है, दीदी का पत्र हर बार की तरह झपट कर जो नहीं लिया.’ हर साल गरमी की छुट्टियों में दीदी के आने का सिलसिला बहुत पुराना था. परंतु विवाह के 5 वर्षों में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो जब उन के आने को ले कर चंद्रिका से उस की जोरदार तकरार न हुई हो. बेचारी दीदी, जो इतनी आस और प्यार के साथ अपने एकलौते, छोटे भाई के घर थोड़े से मान और सम्मान की आशा ले कर आती थीं, चंद्रिका के रूखे बरताव व उन दोनों के बीच होती तकरार से अब चंद दिनों में ही लौट जाती थीं.

दीदी से रवि का लगाव कम होता भी, तो कैसे? दीदी 10 वर्ष की ही थीं, जब मां रवि को जन्म देते समय ही उसे छोड़ दूसरी दुनिया की ओर चल दी थीं. ‘दीदी न होतीं तो मेरा क्या होता?’ यह सोच कर ही उस की आंखें भर उठतीं. दीदी उस की बड़ी बहन बाद में थी, मां जैसी पहले थीं. कैसे भूल जाता रवि बचपन से ले कर जवानी तक के उन दिनों को, जब कदमकदम पर दीदी ममता और प्यार की छाया ले उस के साथ चलती रही थीं.

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