‘‘दीदी,जीजाजी कहा हैं? फोन भी औफ कर रखा है.’’

‘‘बिजी होंगे किसी मीटिंग में, तुम बैठो तो सही, क्या लोगे?’’

‘‘जीजाजी के साथ ही बैठूंगा अब दीदी. मां ने जीजाजी के लिए ये कुछ चीजें भेजी हैं. अच्छा मैं आता हूं अभी,’’ कह कर दिनेश अपनी बड़ी बहन राधिका, जो एक बड़े मंत्री की पत्नी थी, को बैग पकड़ा कर विशालकाय कोठी से बाहर निकल गया.

राधिका ने उत्साह से बैग खोल कर मां की भेजी हुई चीजों पर नजर डाली. सब चीजें उस के पति अमित की पसंद की थीं, उस की खुद की पसंद की एक भी चीज नहीं थी. मां ने सबकुछ अपने मंत्री दामाद के लिए भेजा था, अपनी बेटी के लिए कुछ भी नहीं.

अजीब सा मन हुआ राधिका का. ठंडी सांस लेते हुए बैग एक किनारे रख वहीं सोफे पर बैठ कर अमित के पीए को फोन मिलाया तो उस ने अमित को बता दिया.

‘‘हां बोलो, राधिका, क्या हुआ?’’ अमित

ने पूछा.

‘‘बस, यही याद दिलाना था कि कल सुजाता के स्कूल जाना है, कोई प्रोग्राम मत रखना और हां, दिनेश भी आया है.’’

‘‘हांहां, चलेंगे कल. अभी बिजी हूं बाद में बात करता हूं,’’ कह कर अमित ने फोन रख दिया.

बेटी सुजाता के स्कूल का वार्षिकोत्सव है कल. अमित को याद दिला दिया. वे चलेंगे यह बड़ी बात है नहीं तो अमित इतने व्यस्त रहते हैं कि राधिका ने उन से कोई उम्मीद रखनी छोड़ ही चुकी है... पता नहीं कल कैसे समय निकाल पाएंगे. हो सकता है सुजाता की लगातार जिद का असर हो... वैसे तो उसे आजकल यही लगता है कि कहने के लिए उस के पास सबकुछ है पर हकीकत में नहीं है.

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