अवनी ने मनीष को दवा खिलाई और बाहर आ कर ड्राइंगरूम में टीवी देखने लगी. तभी अंदर से मनीष
के चिल्लाने की आवाज आई. अवनी भगाती हुई अंदर गई तो देखा मनीष गुस्से से भरा बैठा था.

अवनी को देखते ही बोला,"तुम मेरी नर्स हो या पत्नी? 2 मिनट भी साथ नहीं बैठ सकतीं? तुम्हें नाम, पैसा, 2 बेटे, कोठी क्या कुछ नहीं दिया और मेरे बीमार पड़ते ही तुम ने नजरें फेर लीं?"

अवनी इस से पहले कुछ बोलती, उस के दोनों बेटे रचित, सार्थक और सासससुर भी आ गए थे.

रचित गुस्से में बोला,"मम्मी, शर्म आनी चाहिए आप को। एक दिन टीवी नहीं देखोगी तो कोई तूफान नहीं आ जाएगा।"

सास गुस्से में बोलीं,"पत्नी अपने पति के लिए क्या क्या नहीं करती। मेरे बेटे को कैंसर क्या हुआ अवनी कि तुम ने अपनी नजरें ही फेर लीं..."

अवनी कमरे में एक तरफ अपराधी की तरह बैठी रही, वह अपराध जो उस ने किया ही नहीं था. मनीष के सिर पर अवनी ने जैसे ही हाथ फेरा मनीष ने झटक कर हाथ हटा दिया। अवनी की आंखों मे आंसू आ गए. उसे पता था मनीष कैंसर के कारण चिड़चिड़ा हो गया है पर वह क्या करे? वह पूरी कोशिश करती है पर आखिर है तो इंसान ही. पिछले 3 सालों से मनीष के कैंसर का इलाज चल रहा था. अवनी शुरुआत में रातदिन मनीष के साथ साए की तरह बनी रहती थी. पर धीरेधीरे वह तनमन से थक गई थी.

पर परिवार के सब लोग मनीष का भार अवनी पर डाल कर निश्चिंत हो गए थे. मनीष की बीमारी मानों
अवनी के लिए एक कैदखाना हो गई थी. अवनी के उठनेबैठने, कपड़े पहनने तक पर सब की निगाहें रहती थीं. अवनी अगर थोड़ा सा तैयार हो जाती तो मनीष की नजरों में सवाल तैरने लगते थे. अवनी का बहुत मन होता मनीष को बताने का कि उसे दुख है पर वह जीना नहीं छोड़ सकती.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...