हर शनिवार की तरह आज भी तान्या जब दिन में 12 बजे सो कर उठी तो लावण्या के चेहरे पर नाराजगी देख फौरन प्यार से बोली, ‘‘मम्मी, बहुत भूख लगी है, खाना तैयार है न? जल्दी लगा दो, मैं फ्रैश हो कर आई.’’

वहीं बैठे तुषार ने पत्नी का खराब मूड भांप कर समझाते हुए कहा, ‘‘लावण्या, क्यों दुखी हो रही हो? यह तो हर छुट्टी का रुटीन है उस का. चलो, हम भी उस के साथ लंच कर लेते हैं. इस बहाने उस के साथ थोड़ा समय बिता लेंगे.’’

लावण्या कुढ़ते हुए तीनों का खाना लगाने लगी. तान्या आई. डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए बोली, ‘‘आप लोग भी खा रहे हैं मेरे साथ, लेकिन अभी तो 12 ही बजे हैं?’’

तुषार बोले, ‘‘इस बहाने ही तुम्हारी कंपनी मिल जाएगी.’’

‘‘यह बात तो ठीक है पापा, मैं खा कर अभी फिर सो जाऊंगी, आज पूरा दिन आराम करना है.’’

लावण्या कुछ नहीं बोली. तीनों खाना खाते रहे. तान्या ने खाना खत्म कर प्लेट उठाई, रसोई में रखी और बोली, ‘‘अच्छा पापा, थोड़ा और आराम करूंगी. और हां मम्मी, मुझे उठाना मत.’’

तान्या ने अपने रूम का दरवाजा बंद किया और फिर सोने चली गई. पतिपत्नी ने बस चुपचाप एकदूसरे को देखा, कहा कुछ नहीं. कहने लायक कुछ था भी नहीं. दोनों मन ही मन इकलौती, आलसी और लापरवाह बेटी के तौरतरीकों पर दुखी थे.

लंच खत्म कर तुषार टेबल साफ करने में लावण्या का हाथ बंटाने लगे. फिर बोले, ‘‘मेरी जरूरी मीटिंग है, कुछ तैयारी करनी है. तुम थोड़ा आराम कर लो.’’

लावण्या ‘हां’ में सिर हिला कर दुखी मन से अपने बैडरूम में जा कर लेट गई. वह सचमुच बहुत दुखी हो चुकी थी. बेटी के रंगढंग उसे बहुत चिंतित कर रहे थे.

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