‘‘निक्की, पापा ने इतने शौक से तुम्हारे लिए पिज्जा भिजवाया है और तुम उसे हाथ भी नहीं लगा रही, क्यों?’’ अमिता ने झल्ला कर पूछा.

‘‘क्योंकि उस में शिमलामिर्च है और आप ने ही कहा था कि जिस चीज में कैपस्किम हो उसे हाथ भी मत लगाना,’’ निकिता के स्वर में व्यंग्य था.

अमिता खिसिया गई.

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गई थी कि तुझे शिमलामिर्ची से एलर्जी है. तेरे पापा को यह मालूम नहीं है.’’

‘‘उन्हें मालूम भी कैसे हो सकता है क्योंकि वे मेरे पापा हैं ही नहीं,’’ निकिता ने बात काटी.

अमिता ने सिर पीट लिया.

‘‘निक्की, अब तुम बच्ची नहीं हो, यह क्यों स्वीकार नहीं करतीं कि तुम्हारे अपने पापा मर चुके हैं और अब जगदीश लाल ही तुम्हारे पापा हैं?’’

‘‘मैं उसी दिन बड़ी हो गई थी मां जिस दिन मैं ने ही तुम्हें फोन पर पापा के न रहने की खबर दी थी, मेरी गोद में ही तो घायल पापा ने दम तोड़ा था. रहा सवाल जग्गी अंकल का तो आप उन्हें पति मान सकती हैं लेकिन मैं पापा नहीं मान सकती और मां, इस से आप को तकलीफ भी क्या है? आप की आज्ञानुसार मैं उन्हें पापा कहती हूं, उन की इज्जत करती हूं.’’

‘‘लेकिन उन्हें प्यार नहीं करती. जानती है कितनी तकलीफ होती है मुझे इस से, खासकर तब जब वे तेरा इतना खयाल रखते हैं. इतना पैसा लगा कर हमें यहां टूर पर इसलिए साथ ले कर आए हैं कि तू अपने स्कूल प्रोजैक्ट के लिए यह देखना चाहती थी कि छोटी जगहों में जिंदगी कैसी होती है. आज रास्ते में कहीं पिज्जा मिलता देख कर, ड्राइवर के हाथ तेरे लिए भिजवाया है, जबकि वे कंपनी के ड्राइवर से घर का काम करवाना पसंद नहीं करते.’’

‘‘इस सब के लिए मैं उन की आभारी हूं मां, बहुत इज्जत करती हूं उन की लेकिन पापा की तरह उन्हें प्यार नहीं कर सकती. बेहतर रहे कि आइंदा इस बारे में बात कर के न आप खुद दुखी हों, न मुझे दुखी करें. मैं वादा करती हूं, जग्गी अंकल की भावनाओं को मैं कभी आहत नहीं होने दूंगी,’’ निकिता ने पिज्जा को दोबारा पैक करते हुए कहा, ‘‘शाम को उन के पूछने पर कह दूंगी कि आप के साथ खाएंगे और फिर जब पिज्जा गरम हो कर आएगा तो आप मुझे खाने से रोक देना एलर्जी की वजह से. बात खत्म.’’ यह कह कर निकिता अपने कमरे में चली गई.

लेकिन बात खत्म नहीं हुई. निकिता को रहरह कर अपने पापा की याद आ रही थी. वह और पापा भी कालोनी के दूसरे लोगों की तरह अकसर कालोनी की सडक़ पर बैडमिंटन खेला करते थे. उस रविवार की सुबह मां बाजार गई थीं और निकिता पापा के साथ सडक़ पर बैडमिन्त्न खेल रही थी कि एक लौंग शौट मारने के चक्कर में उछल कर पापा एक नए बनते मकान की नींव के लिए रखे पत्थरों के ढ़ेर पर जा गिरे और उन का सिर फट गया. जब तक शोर सुन कर पड़ोस में रहने वाले डाक्टर चौधरी पहुंचे, पापा अंतिम सांस ले चुके थे.

मोबाइल पर निकिता से खबर मिलते ही मां ने शायद जग्गी अंकल को फोन कर दिया था क्योंकि वे मां से पहले पहुंच गए थे और विह्लïल होने के बावजूद उन्होंने बड़ी कुशलता से सब संभाल लिया था. मां और पापा के परिवार वालों का तो रोरो कर हाल बेहाल था. पापा के अंतिम संस्कार के बाद जग्गी अंकल ने सब से गंभीर स्वर में कहा था, ‘जो चला गया उस के लिए रोने के बजाय जिन्हें वह पीछे छोड़ गया है, उन की जिंदगी फिर से पटरी पर लाने के लिए क्या करना है, उस पर शांति से सोचिए.’

‘सोचना क्या है, इन्हें हम अपने साथ ले जाएंगे,’ अमिता की सास ने कहा.

‘मैं भी यही सोच रही हूं. अब अमिता की मरजी है, जहां चलना चाहे, चले,’ अमिता की मां बोली. ‘मेरा कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि यहां मेरी स्थायी नौकरी है, निक्की का स्कूल है और हमारा अपना घर है. बीमे के पैसे से घर का लोन चुकता हो जाएगा और मेरे वेतन से हम मां बेटी का खर्च चल जाया करेगा,’ अमिता ने संयत स्वर में कहा.

‘फिर भी, छोटी बच्ची के साथ तुझे अकेले कैसे छोड़ सकते हैं?’ मां ने पूछा.

‘लेकिन फिलहाल आप न मिड टर्म में निक्की का स्कूल छुड़वा सकती हैं, न ही इतनी जल्दी अमिताजी की लगीलगाई नौकरी और न इस घर को बिकवा या किराए पर चढ़ा सकती हैं?’ अमिता के बोलने से पहले जग्गी ने पूछा, ‘बेहतर रहेगा कि अभी आप लोगों में से कोई बारीबारी इन के साथ रहे, मैं तो आताजाता रहूंगा ही. इस बीच इत्मीनान से कोई स्थायी हल भी ढूंढ लीजिएगा.’

‘जग्गी का कहना बिलकुल ठीक है,’’ अमिता के ससुर ने कहा. और सब ने भी उन का अनुमोदन किया.

निकिता की दादीनानी बारीबारी से उन के साथ रहने लगीं. जग्गी अंकल तो हमेशा की तरह आते रहते थे. पापा के बीमे, प्रौविडैंट फंड और अन्य विदेशों से पैसा निकलवाने में उन्होंने बहुत दौड़धूप की थी और उस रकम का निकिता के नाम से निवेश करवा दिया था. नानीदादी के रहने से और जग्गी अंकल के आनेजाने से पापा के जाने से कोई दिक्कत तो महसूस नहीं हो रही थी लेकिन जो कमी थी, वह तो थी ही. किसी तरह साल भी गुजर गया.

पापा की बरसी पर फिर सब लोग इकट्ठे हुए और उन्होंने जो फैसला किया उस से निकिता बुरी तरह टूट गई थी.

सब का कहना था कि जगदीश लाल से बढ़ कर अमिता और निकिता का कोई  हितैषी हो ही नहीं सकता. सो, वे मांबेटी को उन्हें ही सौंप रहे हैं यानी दोनों की शादी करवा रहे हैं. जगदीश लाल और अमिता ने जिस नाटकीय ढंग से सब की आज्ञा शिरोधार्य की थी उस से निकिता बुरी तरह बिलबिला उठी थी. वह चीखचीख कर कहना चाहती थी कि बंद करो यह नौटंकी, तुम दोनों तो कब से इस दिन के इंतजार में थे. आंखमिचौली तो पापा के सामने ही शुरू कर चुके थे.

पापा के दोस्त जगदीश लाल एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के मार्केटिंग विभाग में काम करते थे. अकसर वे टूर पर उन के शहर में आते थे. पहले तो होटल में ठहरा करते थे, फिर पापा की जिद पर उन के घर पर ही ठहरने लगे. उन के आने से पापा तो खुश होते ही थे, निकिता को भी बहुत अच्छा लगता था क्योंकि अंकल उस के लिए हमेशा कुछ न कुछ ले कर आया करते थे. उस के साथ खेलते थे और होमवर्क भी करवा देते थे. शरारत करने पर डांटते भी थे जो निकिता को बुरा नहीं लगता था. लेकिन जगदीश लाल के आने पर सब से ज्यादा चहकती थीं मां. इंसान अपना गम तो किसी तरह छिपा लेता है मगर खुशी को स्वयं में समेटना शायद आसान नहीं होता, तभी तो मां ने एक दिन शीला आंटी के बगैर कुछ पूछे ही कहा था, ‘न जाने आजकल क्यों मैं बहुत तरोताजा महसूस कर रही हूं खुशी और उत्साह से भरी हुई.’

‘तो खुश रह, वजह ढूंढऩे की क्या जरूरत है?’ शीला आंटी ने लापरवाही से कहा.

लेकिन निकिता ने बताना चाहा था कि उसे वजह पता है, आजकल जगदीश लाल जो आए हुए हैं.

फिर मैनेजर बन कर अंकल की पोस्टिंग उन्हीं के शहर में हो गई थी. पापा के कहने पर कि ‘अब तो शादी कर ले’, अंकल ने कहा था, ‘करूंगा यार, मगर उम्र थोड़ी और बड़ी हो जाने पर ताकि बड़ी उम्र की औरत को अकेले रहते डर न लगे. मार्केटिंग का आदमी हूं, सो, शहर से बाहर जानाआना तो उम्रभर ही चलेगा.’

अंकल के आने के बाद मां का औफिस में देर तक रुकना भी कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. अकसर उन का फोन आता था, ‘मैं तो 8 बजे से पहले नहीं निकल पाऊंगी, आप मुझे लेने मत आओ, निक्की का होमवर्क करवा कर उसे समय पर खाना खिला दो. मैं कैसे भी आ जाऊंगी या ठीक समझो तो जगदीश जी से कह दो.’ जगदीश अंकल भी उन लोगों को दावत पर बुलाते रहते थे और तब मां उस के और पापा के पहुंचने से पहले ही औफिस से सीधे वहां पहुंच चुकी होती थीं. कई बार मां अचानक ही कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बना लेती थीं और वहां घूमते हुए जग्गी अंकल भी मिल जाते थे.

ऐसी छोटीछोटी कई बातें थीं जो तब तो महज इत्तफाक लगती थीं मगर अब सोचो तो लगता है कि पापा की आंखों में धूल झोंकी जा रही थी. जाने वह कब तक इस बारे में सोचती रहती कि मां के पुकारने पर उस की तंद्रा भंग हुई. ‘‘बाहर आओ निक्की, पापा आ गए हैं.’’

‘‘आज अनिता से फोन पर बात हुई थी. कह रही थी कि आधे रास्ते तक तो आए हुए ही हो, फिर मुझ से मिलने भी आ जाओ,’’ अमिता ने बताया.

‘‘बात तो सही है,’’ जगदीश ने कहा, ‘‘मौसी से मिलना है निक्की?’’ निकिता ने खुशी से सहमति में सिर हिलाया.

‘‘आप को छुट्टी मिल जाएगी?’’ अमिता ने पूछा.

‘‘टूर के दौरान छुट्टी लेना नियम के विरुद्ध है, कुछ दिनों बाद तुम्हें लिवाने के लिए छुट्टी ले कर आ सकता हूं. दिन का 7-8 घंटे का सफर है, एसी चेयर में आरक्षण करवा देता हूं, तुम दोनों आराम से चली जाना.’’

मौसी के बच्चे निकिता के समवयस्क थे. सो, उस का समय उन के साथ बड़े मजे में कट रहा था. लेकिन मौसी की आंखों से उस की उदासी छिपी न रह सकी. एक दोपहर जब अमिता सो रही थी, मौका देख कर उन्होंने पूछ ही लिया.

‘‘जग्गी का व्यवहार तेरे साथ कैसा है निक्की?’’

‘‘बहुत अच्छा. वे हमेशा ही मुझे बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘तो फिर तू खुश क्यों नहीं है, इतनी उदास क्यों रहती है?’’

‘‘पापा बहुत याद आते हैं मौसी.’’

‘‘वह तो स्वाभाविक ही है, उन्हें कैसे भुलाया जा सकता है.’’

‘‘लेकिन मां ने तो उन्हें भुला दिया है?’’

‘‘भुलाने का नाटक करती है बेचारी सब के सामने. हरदम रोनी सूरत बना कर कैसे रह सकती है?’’

‘‘रोनी सूरत बनाने का नाटक करती हैं,’’ निक्की फट पड़ी, ‘‘पापा की जिंदगी में ही उन की जग्गी अंकल के साथ लुक्काछिप्पी शुरू हो गई थी…’’ और उस ने धीरेधीरे अनिता को सब बता दिया.

‘‘मगर तेरे पापा की मृत्यु तो दुर्घटना ही थी न?’’

‘‘हां मौसी, वह तो मेरी आंखों के सामने ही हुई थी, उस के लिए तो किसी को दोष नहीं दे सकते लेकिन उस के बाद जो भी हुआ उस के लिए आप सब भी दोषी हैं.

आप सब ने ही तो मां की शादी जग्गी अंकल से करवा कर, पापा का अस्तित्व ही मिटा दिया उन की जिंदगी से.’’

अनिता सुन कर स्तब्ध रह गई. निक्की ने जो भी कहा उसे नकारा नहीं जा सकता था. लेकिन इस के सिवा कोई और चारा भी तो नहीं था. अकेले कैसे पालती अमिता निक्की को और अगर निक्की का जग्गी और अमिता के बारे में कहना सही है, तब तो उन लोगों ने समय रहते उन के रिश्ते पर सामाजिक मोहर लगवा कर परिवार की बदनामी होने को रोक लिया.

‘‘यह क्या कह रही है निक्की? अपने पापा की जीतीजागती धरोहर तू है न अमिता की जिंदगी में. कितने लाड़प्यार से पाल रहे हैं तुझे दोनों. और वैसे भी निक्की, तेरे पापा की यादों के सहारे जीना और तुझे पालना तो बहुत मुश्किल होता अकेली अमिता के लिए. याद है यहां पहुंचने के बाद तूने ही फोन पर जग्गी से कहा था कि तुम लोगों को लेने के लिए तो उसे आना ही पड़ेगा, तू अकेली अमिता के साथ सफर नहीं करेगी.’’

‘‘हां मौसी, हम दोनों को अकेली देख कर कुछ लोगों ने बहुत तंग किया था. रैक पर से सामान उतारने और रखने के बहाने बारबार हमारी सीट से सट कर खड़े हो जाते थे.’’

‘‘जब 7-8 घंटे के सफर में ही लोगों ने तुम्हारे अकेलेपन का फायदा उठाना चाहा तो जिंदगी के लंबे सफर में तो न जाने क्याक्या होता? मैं तुम्हें अपने पापा को भूलने को या उन के अस्तित्व को नकारने को नहीं कह रही निक्की, मन ही मन उन का नमन करो, उन से जीवन में आगे बढऩे की प्रेरणा मांगो, उन से उन की प्रिय अमिता और जिगरी दोस्त जग्गी को खुश करने की शक्ति मांगो. उन दोनों की खुशी के लिए तो तुम्हारे पापा कुछ भी कर सकते थे न?’’ अनिता ने पूछा.

‘‘जी, मौसी.’’

‘‘और उन्हीं दोनों को तू दुखी रखती है उदास रह कर. जानती है निक्की, अपने पापा के लिए तेरी सब से उपयुक्त श्रद्धांजलि क्या होगी?’’

‘‘क्या मौसी?’’ निक्की ने उतावली हो कर पूछा.

‘‘खुश रह कर अमिता और जग्गी को भी खुशी से जीने दे.’’

‘‘जी, मौसी,’’ निकिता ने सिर झुका कर कहा.

बेटा, पिता के मरने के बाद बच्चों से ज्यादा उन की कमी मां को खलती है. तुम तो 5-7 साल में बड़ी हो कर पर लगा कर उड़ जाओगी, पता है तुम्हारी मां अगले 30-40 साल कैसे गुजारेंगी? क्या तुम चाहती हो कि वे अकेले रहें, तुम्हें रातबिरात परेशान करें. हर समय अपनी बीमारियों का रोना रोएं? जग्गी अंकल हैं तो तुम्हें भरोसा है न, कि मां की देखभाल कोई कर रहा है. अपने साथी को खो चुकी मां को यह गिफ्ट तो दे ही सकती है तू.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...