मेरी सोचनेसम झने की शक्ति खत्म हो चुकी थी. बस एक डर लगा हुआ था कि कहीं प्रणय को मेरे अतीत के बारे में सब पता न चल जाए. ‘‘क्या हुआ, तुम ठीक तो हो?’’ मु झे सुस्त देख बाथरूम से निकलते हुए प्रणय ने पूछा, ‘‘देख रहा हूं कुछ सुस्त नजर आ रही हो. खाना भी ठीक से नहीं खाया तुम ने,’’ प्रणय को लगा कि घूमने जाने की बात को ले कर शायद मैं नाराज हो गई. ‘‘अरे, नहीं ऐसी कोई बात नहीं है. वह मेरे पीरियड की डेट नजदीक आ रही है न तो मूड स्विंग हो रहा है. पेट व कमर में दर्द हो रहा है तो लेट गई जरा,’’ मैं ने प्रणय की शंका निवारण हेतु कहा लेकिन बात तो कुछ और ही थी. जब से ऋतिक ने फोन कर मु झे धमकाया था कि अगर मैं ने उस की बात नहीं मानी तो वह प्रणय को हमारे बारे में सबकुछ बता देगा, तब से मेरे दिल में धुकधुकी लगी थी. ‘‘अच्छा, ठीक है आराम करो तुम,’’ बोल कर प्रणय मोबाइल देखने लगे और मैं ऊपर छत निहारने लगी. मोबाइल देखतेदेखते प्रणय तो सो गए लेकिन मेरी आंखों में नींद की जगह डर समाया हुआ था. बारबार वही बातें मेरे दिल को दहला रही थीं कि अगर प्रणय को मेरे अतीत के बारे में सब पता चल गया तो क्या होगा.
आज मन खींच कर मु झे 4 साल पीछे ले गया. उन दिनों की 1-1 बात चलचित्र की तरह मेरी आंखों के आगे तैरने लगी... मैं लखनऊ में अपने मांपापा और छोटी बहन नव्या के साथ रह रही थी. मेरे पापा कालेज में प्रोफैसर हैं और मां स्कूल टीचर हैं. घर में ज्यादातर पढ़ने का ही माहौल होता था. 12वीं कक्षा से ही मेरा सपना डिफैंस में जाने का था मगर मेरे मांपापा चाहते थे कि मैं बैंक सैक्टर में जाऊं. उन का सोचना था कि बैंक सैक्टर लड़कियों के लिए सेफ है और सब से बड़ी बात कि वहां मेल और फीमेल वर्कर में भेदभाव नहीं होता. एक अच्छी बेटी की तरह मैं ने भी अपने मांपापा का कहना माना और ग्रैजुएशन करने के बाद पहली बार में ही बैंक पीओ ऐग्जाम क्रैक कर लिया. हैदराबाद में 15 दिनों की ट्रेनिंग के बाद मेरी पहली पोस्टिंग गुजरात के अहमदाबाद की एक ब्रांच में मिली तो मेरे मांपापा के खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन एक फिक्र भी होने लगी कि मैं वहां इतने बड़े और अनजान शहर में अकेली कैसे रहूंगी.