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लखनऊ के एक पौश इलाके गोमतीनगर में निश्चल कपूर ने अपनी मेहनत के बलबूते आलीशान तीनमंजिली कोठी बनवाई. और चंद वर्षों के अंदर ही उन्होंने समृद्ध और प्रतिष्ठित लोगों के बीच अपना स्थान बना लिया. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कहर ने सबकुछ बदल दिया.

“निश्चल, प्लीज मास्क ठीक से लगाओ. तुम्हारी नाक खुली हुई है. मास्क ठुड्डी पर लटका कर किसे धोखा दे रहे हो?”

“माई डियर निभा, तुम मेरी फिक्र छोड़ अपनी फिक्र करो. मुझ जैसे हट्टेकट्टे तंदुरुस्त इंसान को देख कर कोरोना खुद ही डर कर भाग जाएगा,” जोर का ठहाका लगाते हुए पत्नी निभा की ओर फ्लाइंग किस उछालते हुए वे गाड़ी स्टार्ट कर औफिस चले गए थे.

निभा जब भी कोरोना नियमों की बात करती, निश्चल उसे हंस कर टाल देते. इधर एक हफ्ता भी नहीं बीता कि निश्चल को हलका बुखारखांसी हुई. निभा टैस्ट करवाने को कहती रही लेकिन निश्चल ने उस की एक न सुनी और गोलियां निगल कर औफिस जाते रहे. जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो भी जबरदस्ती करने पर टैस्ट करवाया और पौजिटिव रिपोर्ट आते ही एंबुलैंस में निश्चल को हौस्पिटल जाते देख कर पूरा परिवार सदमे में आ गया. उन्हें यथार्थ सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल में एडमिट करवा दिया गया. चूंकि वे कोरोना पौजिटिव थे, इसलिए उन के छोटे भाई निशीथ दूसरी गाड़ी में अलग से गए और एडमिट करवा कर घर लौट आए थे.

यद्यपि सब लोग सदमे में थे परंतु फिर भी सब के मन में आशा की किरण थी कि निश्चल जल्दी ही स्वस्थ हो कर आ जाएंगे. लेकिन 3-4 दिन ही बीते थे कि निभा भी पौजिटिव हो गई और तब तक कोरोना अपना विकराल रूप धारण कर चुका था. पूरे दिन की जद्दोजेहद के बाद बहुत मुश्किलों में रात 11 बजे उन्हें बैड मिल पाया था. निश्चल के सीटी स्कैन में उन के लंग्स तक इन्फैक्शन पहुंच गया था, इसलिए वे आईसीयू में रखे गए थे.

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