निशीथ जल्दी ही उसे अपनी गाड़ी में बिठा कर घर ले आए थे. वह समझ रही थी कि निशीथ को उस का औफिस आना बिलकुल भी पसंद नहीं आएगा लेकिन अब वह घर से निकल कर निश्चल के अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश करेगी.
घर आते ही वह बोला, “आप को औफिस आने की क्या जरूरत पड़ गई? आखिर आप को क्या कमी है जो आप आज औफिस पहुंच गईं. सब को दिखाना चाहती हैं कि मैं आप की देखभाल सही से नहीं कर रहा हूं? और तो और, सीधा ज्वैलर्स के पास पहुंच गईं. आखिर आप चाहती क्या हैं, क्या मैं कंगाल हूं कि अपनी बीवी के लिए एक सैट नहीं खरीद कर दे सकता?” मम्मी जी और निशा वहां खड़ी हो कर जलती निगाहों से उसे घूर रहीं थीं और उस की हां में हां भी मिला रही थीं.
“क्या कंपनी में मेरे शेयर नहीं हैं? भैया का ‘सक्सेसर’ तो मैं ही हूं. आप को क्या पता कि कंपनी को कैसे चलाते हैं? कुछ समझ है क्या? चुपचाप घर में बैठिए जैसे इतने दिनों से रह रही थीं. ज्यादा हाथपैर मारने की जरूरत नहीं है.”
अपना गुस्सा निकालने के बाद अब वह आराम से बोला, “मुझे भूख लग रही है, कुछ खाने को दीजिए, ज्यादा पंख फड़फड़ाने की जरूरत नहीं है.”
वह डर कर चुप हो गई थी और फिर निशीथ और मम्मी जी के हाथ की कठपुतली बन कर रह गई थी. वह मन ही मन सोचा करती कि निश्चल उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे, आज उस की स्थिति कोने में रखे कचरे की तरह हो गई है.