बड़ी जिम्मेदारियां थीं शरद के ऊपर. अभी उस की उम्र ही क्या थी. महज 35 साल. रजनी सिर्फ 31 साल की थी और सोनू तो अभी 3 साल का ही था. उस ने जेब में हाथ डाल कर गुटखे के दोनों पाउच को सामने ही रखे बड़े से डस्टबिन में फेंक दिया.
‘देखिए, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता...’ शरद को लगा, जैसे डाक्टर का कहा उस के जेहन में गूंज रहा हो, ‘अगर दवाओं से आराम हो गया तो ठीक है, नहीं तो कुछ कहा नहीं जा सकता. मुंह पूरा नहीं खुल पा रहा है. अगर आराम नहीं हुआ तो कुछ टैस्ट कराने पड़ेंगे. 5 दिन की दवा दे रहा हूं, उस के बाद दिखाइएगा.’
तब सोनू पैदा नहीं हुआ था. रजनी के मामा के लड़के की शादी थी. शरद की खुद की शादी को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था. शादी के बाद ससुराल में पहली शादी थी. उन्हें बड़े मन से बुलाया गया था.
रजनी के मामाजी का घर बिहार के एक कसबेनुमा शहर में था. रजनी के पिताजी, मां, भाई व बहन भी आ ही रहे थे. दफ्तर में छुट्टी की कोई समस्या नहीं थी, इसलिए शरद ने भी जाना तय कर लिया था. ट्रेन सीधे उस शहर को जाती थी. रात में चल कर सुबहसुबह वहां पहुंच जाती थी, पर ट्रेन लेट हो कर 10 बजे पहुंची.
स्टेशन से ही आवभगत शुरू हो गई. उन्हें 4 लोग लेने आए थे. उन्हीं में थे विनय भैया. थे तो वे शरद के साले, पर उम्र थी उन की 42 साल. खुद ही बताया था उन्होंने. वे रजनी के मामाजी के दूर के रिश्ते के भाई के लड़के थे.