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पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- सुसाइड: भाग 1

एक गुटखा थूकने के तुरंत बाद फिर गुटखा खाने की तलब लगती थी. यही गुटखे की खासीयत है.

मुसीबत की शुरुआत मसूढ़ों के दर्द से हुई. पहले हलकाहलका दर्द था. खाना खाते समय मुंह चलाते समय दर्द बढ़ जाता था. फिर ब्रश करते समय मुंह खोलने में दर्द होने लगा.

शरद ने कुनकुने पानी में नमक डाल कर खूब कुल्ले किए, पर कोई आराम न हुआ. धीरेधीरे औफिस के लोगों को पता चला. उन्होंने उसे डाक्टर को दिखाने को कहा. पर उसे लगा शायद यह दांतों का साधारण दर्द है, ठीक हो जाएगा. यह गुटखे के चलते है, यह मानने को उस का मन तैयार नहीं हुआ. कितने लोग तो खाते हैं, किसी को कुछ नहीं होता. उस के महकमे के इंजीनियर साहब महेशजी तो गुटखे की पूरी लड़ी ले कर आते थे. उन का मुंह तो कभी खाली नहीं रहता था. उन की तो उम्र भी 50 के पार है. जब उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो उसे क्या होगा. वह खाता रहा.

फिर शरद के मुंह में दाहिनी तरफ गाल में मसूढ़े के बगल में एक छाला हुआ. छाले में दर्द बिलकुल नहीं था, पर खाने में नमकमिर्च का तीखापन बहुत लगता था. छाला बड़ा हो गया. बारबार उस पर जबान जाती थी. फिर छाला फूट गया. अब तो उसे खानेपीने में और भी परेशानी होने लगी.

वह महल्ले के होमियोपैथिक डाक्टर से दवा ले आया. वे पढ़ेलिखे डाक्टर नहीं थे. रिटायरमैंट के बाद वे दवा देते थे. उन्होंने दवा दे दी, पर आराम नहीं हुआ. आखिरकार रजनी के जोर देने, पर वह डाक्टर को दिखाने के लिए राजी हुआ.

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‘क्या मु झे सच में कैंसर हो गया है,’ शरद ने स्कूटर में किक लगाते हुए सोचा, ‘अब क्या होगा?’

शरद ने तय किया कि अभी वह रजनी को कुछ नहीं बताएगा. डाक्टर ने भी 5 दिन की दवा तो दी ही है. वह 5-6 दिनों की छुट्टी लेगा. रजनी से कह देगा कि डाक्टर ने आराम करने को कहा है. अभी से उसे बेकार ही परेशान करने से क्या फायदा. यही ठीक रहेगा.

घर पहुंच कर उस ने स्कूटर खड़ा किया और घंटी बजाई. दरवाजा रजनी ने ही खोला. रजनी को देखते ही वह अपने को रोक न सका और फफक कर रो पड़ा.

रजनी एकदम से घबरा गई और शरद को पकड़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘क्या हुआ…? क्या हो गया? सब ठीक तो है?’’

‘‘मु झे कैंसर हो गया है…’’ कह कर शरद जोर से रजनी से लिपट गया, ‘‘यह क्या हो गया रजनी. अब क्या होगा?’’

‘‘क्या… कैंसर… यह आप क्या कह रहे हैं. किस ने कहा?’’

‘‘डाक्टर ने कहा है,’’ शरद से बोलते नहीं बन रहा था.

रजनी एकदम घबरा गई, ‘‘आप जरा यहां बैठिए.’’

उस ने शरद को जबरदस्ती सोफे पर बिठा दिया, ‘‘और अब मु झे ठीक से बताइए कि डाक्टर ने क्या कहा है.’’

‘‘वही,’’ अब शरद फिर रो पड़ा, ‘‘मुंह में इंफैक्शन हो चुका है. 5 दिन के लिए दवा दी है. कहा है, अगर आराम नहीं हुआ तो 5 दिन बाद टैस्ट करना पड़ेगा.’’

‘‘क्या डाक्टर ने कहा है कि आप को कैंसर है? साफसाफ बताइए.’’

‘‘अभी नहीं कहा है. टैस्ट वगैरह हो जाने के बाद कहेगा. तब तो आपरेशन भी होगा.’’

‘‘जबरदस्ती. आप जबरदस्ती सोचे जा रहे हैं. हो सकता है कि 5 दिन में आराम हो जाए और टैस्ट भी न कराना पड़े.’’

‘‘नहीं, मैं जानता हूं. यह गुटखा के चलते है. कैंसर ही होता है.’’

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‘‘गुटखा तो आप छोड़ेंगे नहीं,’’ रजनी ने दुख से कहा.

‘‘छोड़ूंगा. छोड़ दिया है. पान भी नहीं खाऊंगा. लोग कहते हैं कि यह आदत एकदम छोड़ने से ही छूटती है.’’

‘‘खाइए मेरी कसम.’’

‘‘तुम्हारी और सोनू की कसम तो मैं पहले ही कई बार खा चुका हूं, पर फिर खाता हूं कि नहीं खाऊंगा. पर अब क्या हो सकता है. नुकसान तो हो ही गया है रजनी. अब तुम्हारा क्या होगा? सोनू का क्या होगा?’’ शरद फिर मुंह छिपा कर रो पड़ा.

‘‘रोइए नहीं और घबराइए भी नहीं. हम लड़ेंगे. अभी तो आप को कन्फर्म भी नहीं है. कानपुर वाले चाचाजी का तो गाल और गले का आपरेशन भी हुआ था. देखिए, वे ठीकठाक हैं. आप को कुछ नहीं होगा. हम लड़ेंगे और जीतेंगे. आप को कुछ नहीं होगा,’’ रजनी की आवाज दृढ़ थी.

रजनी शरद को पकड़ कर बैडरूम में लाई. वह दिनभर घर में पड़ा रहा. नींद तो नहीं आई, पर टैलीविजन देखता रहा और सोचता रहा. कहते हैं, कैंसर का पता चलने के बाद आदमी ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक जिंदा रह सकता है. उस की सर्विस अभी 10 साल की हुई है. पीएफ में कोई ज्यादा पैसा जमा नहीं होगा. ग्रैच्यूटी तो खैर मिल ही जाएगी. आवास विकास का मकान कैंसिल कराना पड़ेगा. रजनी किस्त कहां से भर पाएगी. अरे, उस का एक बीमा भी तो है. एक लाख रुपए का बीमा था. किस्त सालाना थी.

तभी शरद को याद आया, इस साल तो उस ने किस्त जमा ही नहीं की थी. यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई. वह लपक कर उठ कर गया व अलमारी से फाइल निकाल लाया. बीमा की पौलिसी और रसीदें मिल गईं. सही में 2 किस्तें बकाया थीं. वह चिंतित हो गया. कल ही जा कर वह किस्तों का पैसा जमा कर देगा. उस ने बैग से चैकबुक निकाल कर चैक

भी बना डाला. फिर उस ने चैकबुक रख दी और तकिए पर सिर रख कर बीमा पौलिसी के नियम पढ़ने लगा.

‘‘मैं खाना लगाने जा रही हूं…’’ रजनी ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘यह आप क्या फैलाए बैठे हैं?’’

‘‘जरा बीमा पौलिसी देख रहा था.2 किस्तें बकाया हो गई हैं. कल ही किस्तें जमा कर दूंगा.’’

‘‘अरे, तो तुम वही सब सोच रहे हो. अच्छा चलो, पहले खाना खा लो.’’

रजनी ने बैड के पास ही स्टूल रख कर उस पर खाने की थाली रख दी. शरद खाना खाने लगा. तकलीफ तो हो रही थी, पर वह खाता रहा.

‘‘रजनी, एक बात बताओ?’’ शरद ने खाना खाते हुए पूछा.

‘‘क्या है…’’ रजनी ने पानी का गिलास रखते हुए कहा.

‘‘यह सुसाइड क्या होता है?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘मतलब यह कि गुटखा खाना सुसाइड में आता है या नहीं?’’

‘‘अब मु झ से बेकार की बातें मत करो. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’

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‘‘नहीं, असल में पौलिसी में एक क्लौज है कि अगर कोई आदमी जानबू झ कर अपनी जान लेता है तो वह क्लेम के योग्य नहीं माना जाएगा. गुटखा खाने से कैंसर होता है सभी जानते हैं और फिर भी खाते हैं. तो यह जानबू झ कर अपनी जान लेने की श्रेणी में आएगा कि नहीं?’’

अब रजनी अपने को रोक न सकी. उस ने मुंह घुमा कर अपना आंचल मुंह में ले लिया और एक सिसकी ली.

दूसरे दिन शरद तैयार हो कर औफिस गया. वह सीधे महेंद्रजी के पास गया. उस का बीमा उन्होंने ही किया था. उस ने उन्हें अपनी किस्त का चैक दिया.

‘‘अरे महेंद्रजी, आप ने तो याद भी नहीं दिलाया. 2 किस्तें पैंडिंग हैं.’’

‘‘बताया तो था,’’ महेंद्रजी ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप ही ने ध्यान नहीं दिया. थोड़ा ब्याज भी लगेगा. चाहिए तो मैं कैश जमा कर दूंगा. आप बाद में दे दीजिएगा.’’

‘‘महेंद्रजी एक बात पूछनी थी आप से?’’ शरद ने धीरे से कहा.

‘‘कहिए न.’’

‘‘वह क्या है कि… मतलब… गुटखा खाने वाले का क्लेम मिलता है न कि नहीं मिलता?’’

‘‘क्या…?’’ महेंद्रजी सम झ नहीं पाए.

‘‘नहीं. मतलब, जो लोग गुटखा वगैरह खाते हैं और उन को कैंसर हो जाता है, तो उन को क्लेम मिलता है कि नहीं?’’

‘‘आप को हुआ है क्या?’’

‘‘अरे नहीं… मु झे क्यों… मतलब, ऐसे ही पूछा.’’

‘‘अच्छा, अब मैं सम झा. आप तो जबरदस्त गुटखा खाते हैं, तभी तो पूछ रहे हैं. ऐसा कुछ नहीं है. दुनिया पानगुटखा खाती है. ऐसा होता तो बीमा बंद हो जाता.’’

‘‘पर… उस में एक क्लौज है न.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘वही सुसाइड वाला. बीमित इनसान का जानबू झ कर अपनी जान देना.’’

महेंद्रजी कई पलों तक उसे हैरानी से घूरते रहे, फिर ठठा कर हंस पड़े, ‘‘बात तो बड़े काम की आई है आप के दिमाग में. सही में गुटखा खाने वाला अच्छी तरह से जानता है कि उसे कैंसर हो सकता है और वह मर सकता है. एक तरह से तो यह सुसाइड ही है. पर अभी तक कंपनी का दिमाग यहां तक नहीं पहुंचा है. बस, आप किसी को बताइएगा नहीं.’’

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