कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

स्मिता हलके से मुसकराई फिर बोली, ‘‘रुकिए... दूसरों से हम जितनी अपेक्षाएं रखते हैं, यदि उस की आधी भी दूसरों के प्रति पूरी करें तो शायद जिंदगी ज्यादा खुशहाल हो जाए. आज आप ने ईमानदारी से उत्तर दिया तो खुशी हुई कि आप को अपने किए का एहसास है. समस्याएं तो हम सब के जीवन में आती हैं. यह हम पर है कि हम उस समस्या को खींच कर बड़ा बना देते हैं या उस का समाधान ढूंढ़ कर उसे हल करते हैं. कोई भी समस्या इंसान से बड़ी नहीं होती. हम सब इंसान ही हैं, हम से गलतियां भी हो जाती हैं पर कहते हैं, प्रायश्चित्त के आंसू गुनाह धो देते हैं और माफ करने वाला छोटा नहीं हो जाता... ऐसा किसी ने मुझे समझाया है,’’ कहते हुए उस ने कविता की तरफ देखा जिस की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला उठे थे.

‘‘अपने परिवार की खुशी ही सदैव मेरी प्राथमिकता रही है... अगर सब यही चाहते हैं तो...’’ आगे कुछ कहते सहसा वह रुक गई.

उस की बातों का अर्थ समझते ही अभिजीत खुशी से भर उठा, ‘‘मुझे आप से यही उम्मीद थी भाभी...’’ और दौड़ कर आशुतोष को खींच कर स्मिता के बगल में खड़ा कर दिया. मौसी भी खुश हो कर दोनों को ढेरों शुभकामनाएं देने लगीं.

पलक तनिक हैरानी से मां को देखते फुसफुसा कर बोली, ‘‘मां आप के स्वाभिमान को यह गंवारा होगा?’’

‘‘बेटा... मेरा स्वाभिमान तो आज भी अपनी जगह है. पर पति हर स्त्री का अभिमान होता है, उसे कैसे वापस कर दूं?’’

पलक दौड़ कर अपनी मां के गले से लिपट गई. स्वयंसिद्धा के मान ने सब को जीवन की नई खुशियों से भर दिया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...