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‘‘पार्वती, तुम आज और अभी यह कमरा खाली कर दो और यहां से चली जाओ.’’

‘‘भाभी, मैं कहां जाऊंगी?’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं. तुम कहीं भी जाओ. जिओ, मरो, मेरी बला से. मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहती.’’ रीना का दिल पिघलाने के लिए पार्वती आखिरी अस्त्र का प्रयोग करते हुए उन के पैर पकड़ कर फूटफूट कर रोने लगी. अपना सिर उन के पैरों पर रख कर बोली, ‘‘भाभी, माफ कर दो, मुझ से गलती हो गई.’’

‘‘तुम अपना सामान खुद बाहर निकालोगी कि मैं वाचमैन से कह कर बाहर फिंकवाऊं?’’ रीना खिड़की से चोरनिगाहों से रोमेश के घबराए हुए चेहरे को देख रही थी. वे ड्राइंगरूम में बेचैनी से चहलकदमी करते हुए चक्कर काट रहे थे. साथ ही, बारबार चेहरे से पसीना पोंछ रहे थे. रीना की कड़कती आवाज और उस के क्रोध से पार्वती डर गई और निराश हो कर उस ने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया. उस की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. आज रोमेश ने रीना के विश्वास को तोड़ा था. रीना के मन में विचारों की उमड़घुमड़ मची हुई थी. 30 वर्ष से उस का वैवाहिक जीवन खुशीखुशी बीत रहा था. रोमेश जैसा पति पा कर वह सदा से अपने को धन्य मानती थी. वे मस्तमौला और हंसोड़ स्वभाव के थे. बातबात में कहकहे लगाना उन की आदत थी. रोते हुए को हंसाना उन के लिए चुटकियों का काम था. रोमेश बहुत रसिकमिजाज भी थे. महिलाएं उन्हें बहुत पसंद करती थीं.

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62 वर्षीया रीना 2 प्यारीप्यारी बेटियों की सारी जिम्मेदारी पूरी कर चुकी थी. त्रिशा और ईशा दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर, उन की शादीब्याह कर के अपनी जिम्मेदारियों से छुट्टी पा चुकी थी. वह और रोमेश दोनों आपस में सुखपूर्वक रह रहे थे. बड़ी बेटी त्रिशा की शादी को 8 वर्ष हो चुके थे परंतु वह मां नहीं बन सकी थी. अब इतने दिनों बाद कृत्रिम गर्भाधान पद्धति से वह गर्भवती हुई थी. डाक्टर ने उसे पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी. उस की देखभाल के लिए उस के घर में कोई महिला सदस्य नहीं थी. इसलिए रीना का जाना आवश्यक था. लेकिन वह निश्ंिचत थी क्योंकि उसे पार्वती पर पूर्ण विश्वास था कि वह घर और रोमेश दोनों की देखभाल अच्छी तरह कर सकती थी. रोमेश हमेशा से छोटे बच्चे की तरह थे. अपने लिए एक कप चाय बनाना भी उन के लिए मुश्किल काम था. पार्वती के रहने के कारण रीना बिना किसी चिंता के आराम से चली गई थी. कुछ दिनों बाद त्रिशा के घर में प्यारी सी गुडि़या का आगमन हुआ. वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी. रोमेश भी गुडि़या से मिलने आए थे. वे 2-3 दिन वहां रहे थे और चिरपरिचित अंदाज में बेटी त्रिशा से बोले, ‘तुम्हारी मम्मी को मेरे लिए टाइमपास का अच्छा इंतजाम कर के आना चाहिए था. घर में बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’ उन की बात सुन कर सब हंस पड़े थे. रीना शरमा गई थी. वह धीमे से बोली थी, ‘आप भी, बच्चों के सामने तो सोचसमझ कर बोला करिए.’ वह चुपचाप उठ कर रसोई में चली गई थी.

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