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गांव के जो एकदो लोग किशोर के साथ दरवाजे पर थे वह भी दोनों बच्चियों की एक सी शक्ल देख कर हैरान थे. किशोर की आंखें भी लगभग फटी हुई थीं, कविता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ और सब से अलग मुरली अपनी नजरें सभी से छुपाने लगा.

हरतरफ से आवाज आने लगी, कोई कहता “ये तो एक ही शक्ल की हैं,” तो कहीं से आवाज आती “बिलकुल जुड़वां बहनें लग रही हैं”.

ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच किसी फिल्म का दृश्य हो. जैसे गोविंदा की एक फिल्म में उस की दो बीवियों से दो बच्चे थे और दोनों की ही शक्लें बिलकुल एक जैसी थीं.

सुमन और कोमल की उम्र में एक साल का अंतर था लेकिन शक्ल में रत्ती बराबर का भी नहीं. सुमन की आंखें भी बड़ी और गोल थीं, कोमल की आंखें भी. सुमन के होंठ भी पतले थे, कोमल के होंठ भी. सुमन का माथा भी चौड़ा था, कोमल का भी. यहां तक कि सुमन का रंग भी गोरा था और कोमल का भी. आखिर, यह कैसे संभव था कि दो अलगअलग कोख से जन्मी बच्चियां एक सी हों बजाए कि उन का पिता एक हो.

सभी के दिमाग में यह बात आने में देर नहीं लगी. किशोर सुमन को ले कर अपने घर चला गया.  किशोर की पत्नी ललिता घर में पसीनापसीना हो रखी थी. किशोर ने उसे देखा और देखते ही उस की बांह कसकर भींच ली.

“चल कमरे में,” किशोर ने कहा.

“क्या... हुआ?” ललिता ने हकलाते हुए कहा.

“इस छोरी की शक्ल उस मुरली की छोरी से कैसे मिलती है?”

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