कहानी- लक्ष्मी प्रिया टांडि
यही वजह थी कि मेरे घर वाले जल्द ही गिरगिट की तरह रंग बदल कर मेरे सामने हाजिर हो गए कि चल कर उसे आशीर्वाद दे दो, जब उसे ही अपनी चिंता नहीं है तो फिर भाड़ में जाए. मैं दुविधा की स्थिति में न चाहते हुए खुशबू के सामने जा खड़ी हुई. जब उस ने स्निग्ध मुसकान के साथ मेरे पैरों को हाथ लगा कर अपनी आंखों से लगाया तो मैं खुद पर काबू न रख सकी और उसे अपने कदमों से उठा कर सीने से लगा लिया.
हम दोनों की पलकें भीग उठीं. उफ, मैं बता नहीं सकती कि कैसी अजीब सी तृष्णा थी जो उसे हृदय से लगाने पर तृप्त होता मैं ने अनुभव किया. खुशबू तो बिन मां की बड़ी हुई थी सो उस के पास इतना भावुक होने की वजह थी पर मेरा मन क्यों भर आया, मैं आज तक न जान सकी.
विवाह की अगली सुबह साढ़े 5 बजे ही अपने कमरे के दरवाजे पर दस्तक सुन कर मैं ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने खुशबू नाइटी पहने खड़ी थी. ‘क्या बात है, बेटी, तू इस तरह इतनी सुबह यहां…’ मैं कुछ घबरा सी उठी.
जवाब में उस ने आंखें खोल कर भरपूर नजरों से मुझे देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘मां, मैं चाहती थी कि आप का स्नेहमयी और ममतामयी चेहरा देख कर ही मैं ससुराल में अपना दिन शुरू करूं.’
उस की बातें सुन कर मुझे अजीब सी अनुभूति हुई क्योंकि अब तक अपने लिए मैं यही सुनती आई थी कि सुबहसुबह विधवा का मुंह देख लिया, बड़ा अपशकुन हो गया.
अब जब रोज खुशबू का दिन मेरा चेहरा देख कर शुरू होने लगा तो धीरेधीरे मेरे मन से यह वहम निकल गया कि मेरा मुख देखने से किसी का अमंगल भी हो सकता है.
निखिल की शादी के करीब महीने भर बाद उस के एक अंतरंग मित्र राजेश की शादी की पहली वर्षगांठ थी. इस मौके पर पूरे परिवार को न्योता दिया था. राजेश के घर जाने के लिए उस दिन सभी लोग बनसंवर कर तैयार हो गए थे. मैं भी झटपट एक सफेद सूती साड़ी बांध कर तैयार हो गई. महेश के गुजरने के बाद से घर हो या बाहर यही मेरा पहनावा था.
हम सब घर से निकलने ही वाले थे कि खुशबू मुझे देख कर चौंक गई, ‘यह क्या मां? तुम पार्टी में इस तरह चलोगी?’
जवाब जेठानी ने दिया, ‘अरे, तो क्या एक विधवा सोलह शृंगार कर के जाएगी? तू नहीं जानती बहू, हमारे में एक विधवा को इसी रूप में रहना पड़ता है.’
खुशबू ने विनम्र किंतु दृढ़ स्वर में कहा, ‘आप सही कह रही हैं बड़ी मां, विधवा औरत का शृंगार करना कुछ जंचता नहीं पर शृंगार के बगैर फंक्शन में सुरुचिपूर्ण तरीके से तैयार हो कर हलके रंगों का परिधान तो पहना ही जा सकता है. आप लोग बस 5 मिनट ठहरिए, हम अभी आते हैं और वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचती हुई ले गई.’
कमरे में आ कर मैं ने खुशबू को फिर समझाया, ‘मैं ऐसे कपड़े ही पहनती हूं और अब तो मुझे इस की आदत पड़ गई है.’
हमेशा की तरह उस ने मुझे अपने प्रेम और न्यायअन्याय का तर्क दे कर परास्त कर दिया और मुझे ऐसे तैयार किया जैसे एक मां अपनी बच्ची को तैयार करती है.
तैयार करने के बाद जब उस ने मुझे अलमारी में लगे आदमकद आईने के सामने खड़ा किया तो मैं खुद को देख कर ठगी सी रह गई. मुझे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि मेरी उम्र 42 से ऊपर हो चुकी है.
बैठक में घुसते ही परिवार वालों की नजरें मुझ से चिपक सी गईं. उन में से कुछ नजरों में मेरे लिए प्रशंसा और आदर के भाव थे तो कहीं ईर्ष्या और उलाहना भी शामिल था परंतु मेरी छवि को अशोभनीय कहने लायक कोई बहाना खुशबू ने नहीं छोड़ा था. इसलिए चाहते हुए भी कोई कटाक्ष न कर पाया.
हलकी वसंती रंग की साड़ी के साथ मेल खाता चिकन का ब्लाउज, हाथों, गले और कानों में सोने के हलके आभूषण, माथे पर वसंती रंग की छोटी सी बिंदी के साथ ढंग से बांधे गए ढीले जूड़े ने मेरे पूरे व्यक्तित्व को ही बदल डाला था. होश संभालने के बाद से पहली बार मेरे बच्चे मुझे इस रूप में देख रहे थे. निशा तो खुशी से रो ही पड़ी थी.
उस दिन पार्टी में शायद ही कोई परिचित बचा हो जिस ने मेरी नई वेशभूषा की भूरिभूरि प्रशंसा न की हो. उन के तारीफ करने पर उन सभी को मैं यह बताना नहीं भूली कि इस का श्रेय सिर्फ खुशबू को जाता है. उस दिन मैं ने अपने खोए हुए औरतपन को फिर से महसूस किया और जिंदगी को नई नजरों से देखना शुरू किया.
इस के कुछ ही दिन बाद की बात है. खुशबू और निशा ने मिल कर ढेर सारे पकवानों के साथ चिकनबिरयानी भी बनाई थी. उस दिन भी मुझे ले कर जबरदस्त भूचाल आया. हमेशा की तरह जब मैं अपने लिए अलग से बनाए सादे भोजन को लेने रसोई की ओर चली तो खुशबू ने मुझे टोक दिया, ‘मां, हमारे साथ ही खाओ न. अकेले खाना क्या अच्छा लगता है?’ तब मैं उसे टाल न सकी थी.
खाने की मेज पर जब उस ने सब के साथ मेरे लिए भी वही खाना परोसा तो मेरे साथ ही सब की आश्चर्य भरी नजरें मेरी थाली की ओर उठ गईं.
निशा ने कहा, ‘भाभी, लगता है तुम ने गलती से किसी और की थाली मां के सामने रख दी. तुम तो जानती ही हो कि मां यह सब नहीं खाती हैं.’
‘हां, बेटी, मेरा खाना रसोई में अलग रखा है. जा कर ले आओ,’ मैं ने अपनी पसंदीदा चिकनबिरयानी को परे सरकाते हुए कहा तो सब के चेहरों के तनाव कुछ कम हो गए.
‘मां, तुम्हारे लिए रखा गया भोजन मैं ने कामवाली को दे दिया है. क्योंकि आज उस ने कुछ खाया नहीं था,’ खुशबू ने लोगों के चेहरे की ओर देखते हुए कहा, ‘आज से तुम भी वही खाना खाओगी जो सब के लिए बनेगा. मैं इतना काम नहीं कर सकती कि एक बार तुम्हारे लिए खाना बनाऊं फिर दोबारा पूरे परिवार के लिए बनाऊं. अभी तो निशा मेरा हाथ बंटा देती है पर 2 महीने बाद जब वह ससुराल चली जाएगी तब क्या होगा?’
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