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कहानी- लक्ष्मी प्रिया टांडि

‘बेटी, तब मैं तुम्हारी मदद कर दिया करूंगी. पहले भी तो मैं रसोई का काम किया करती थी,’ मैं ने उसे समझाने की गरज से कहा.

‘न…बाबा…न. मेरे पापा को पता चलेगा तो मुझे बहुत डांट पड़ेगी कि मैं आप से काम करवाती हूं. फिर जब मैं आप से ही मदद नहीं ले सकती तो बूआजी और बड़ी मां से कैसे लूं? वे तो आप से भी बड़ी हैं. एक काम किया जा सकता है. सभी के लिए एक जैसा भोजन बनाया जा सकता है. इस से मुझे भी दिक्कत नहीं होगी और सभी लोग एक जैसे भोजन का आनंद ले सकेंगे.’

‘क्यों न कल से मां के लिए सभी के जैसा खाना बनाया जाए? क्योंकि सिर्फ मां को ही मांसाहारी भोजन से परहेज है, पर बाकी लोग तो खुशी से शाकाहारी भोजन खा सकते हैं,’ खुशबू ने कहा तो सब के चेहरों की मुसकान गायब हो गई.

करीबकरीब हर रोज मांसाहारी भोजन का स्वाद लेने वाली जेठानी और ननद की जबान यह सुन कर अकुला उठी. ननद ने कहा, ‘अरे, ऐसा कैसे हो सकता है. हम रोज घासफूस नहीं खा सकते.’

‘क्यों नहीं खा सकते?’ खुशबू ने जोर दे कर कहा, ‘जिस भोजन की कल्पना से आप लोग घबरा उठी हैं वही खाना मां इतने सालों से खाती आ रही हैं, यह विचार भी कभी आप लोगों के दिलों में आया है?’

खुशबू के इस तर्क पर जेठानी ने होशियारी दिखाते हुए बात संभालने की गरज से कहा, ‘तू ठीक कहती है, बहू, खानेपीने में क्या रखा है, यह तो लता ही कहती है कि तामसिक भोजन से मन में विकार उत्पन्न होता है. इसलिए विधवा को सात्विक भोजन करना चाहिए,’ फिर मेरी तरफ देखती हुई ठसक से बोलीं, ‘देख लता, अब तेरी यह जिद नहीं चलने वाली. तुझे भी वही खाना पड़ेगा जो हम सब खाते हैं. बहू ठीक ही तो कहती है.’

इस पर ननद ने भी अनिच्छा से समर्थन जताया क्योंकि उन की चटोरी जबान सागसब्जी खा कर तृप्त नहीं हो सकती थी. सालों बाद मैं ने अपना पसंदीदा भोजन किया. मेरा दिल खुशबू को लाखलाख दुआएं देता रहा था.

मेरे साथ प्रतिबंध और नियमकानून का आखिरी दौर निशा की शादी में खत्म हुआ. शादी से एक दिन पहले निशा जोरजोर से रोए जा रही थी. पहले तो सब ने यह समझा कि मायके से बिछुड़ने का गम उसे सता रहा है पर बात कुछ और थी. खुशबू के बहुत पूछने पर निशा ने बताया कि उसे इस बात का दुख है कि मां चाहते हुए भी उस की शादी नहीं देख पाएंगी. पिता तो थे नहीं, मां भी शादी के मंडप में मौजूद नहीं होंगी.

जब खुशबू ने घर में ऐलान किया कि निशा की शादी के मंडप में मां भी बैठेंगी तो घर में मौजूद स्त्रियां भड़क उठीं कि विधवा की मौजूदगी से शुभ काम में अमंगल होगा.

ननद ने कहा, ‘बहू, तुम्हारी हर उलटीसीधी बात मैं अब तक मानती रही हूं पर इस बार तुम चुप ही रहो तो अच्छा है क्योंकि तुम्हें इस घर के रीतिरिवाजों का पता नहीं है. अपनी मर्यादा में रहा करो और मुझे अपने एस.पी. पापा के ओहदे की धौंस मत दिखाओ. हद हो गई…’

बस, यह चिनगारी काफी थी. निशा को बैठा छोड़ खुशबू तन कर खड़ी हो गई और जो बोलना शुरू किया तो सभी को काठ मार गया. बोली, ‘आप ने सही कहा, बूआजी. आज तो सच में हद हो गई. यह सही है कि मैं ठीक से आप के रस्मोरिवाजों को नहीं जानती पर मैं खुद एक औरत हूं. इसलिए एक औरत की भावना को अच्छी तरह समझ सकती हूं.

‘छोटा मुंह बड़ी बात कह रही हूं. इसलिए माफ कीजिएगा. मैं यह कहे बिना नहीं रह सकती कि जो नियम और कायदेकानून मां पर लागू होते हैं वे सब आप पर भी लागू होते तो ज्यादा बेहतर होता. मां विधवा होने का जो कष्ट भोगती  आ रही हैं, उस में उन की कहीं कोई गलती नहीं है क्योंकि यह कुदरत का नियम है कि जो जन्मा है उसे मरना है. पर आप तो जीतेजी फूफाजी और अपने बच्चों को छोड़ आई हैं. आप न तो अच्छी मां साबित हुईं न ही एक अच्छी पत्नी. फिर भी आप के लिए संसार की हर सुखसुविधा, साजशृंगार, खानपान और आमोदप्रमोद वर्जित नहीं हैं, क्यों? सिर्फ इसलिए कि आप की मांग में सुहागन होने का लाइसेंस चमक रहा है.’

सभी जड़ हो कर खुशबू के तर्क को सुन रहे थे. यद्यपि मेरे हितों के लिए वह सब को चुनौती दे रही थी फिर भी मैं ने उसे चुप होने के लिए कहा, ‘खुशबू, बेटी, बस कर, तू भी…’

इशारे से मुझे खामोश करते हुए खुशबू बोली,  ‘मां, बस, आज भर मुझे कहने से मत रोको. आज के बाद मैं इन से कुछ नहीं कहूंगी. बड़ी मां और बड़े पापा, आप लोगों ने भी बूआजी को सही रास्ता न दिखा कर उलटे उन्हीं का पक्ष  लिया. दुख तो इस बात का है कि हम यह समझ ही नहीं पाते कि पति के गुजरने के बाद तो वैसे भी औरत जीतेजी मर जाती है. जो थोड़ाबहुत सुख उसे मिल सकता है उस से भी हम धर्म और परंपरा के नाम पर यह कह कर उसे वंचित कर देते हैं कि यह सब विधवाओं के लिए नहीं है.’

फिर ननद की ओर देखती हुई बोली, ‘बूआजी, मैं ने अपनी मर्यादा और हदों को कभी पार नहीं किया और न ही कभी करूंगी परंतु इस का उल्लंघन भी अपनी ससुराल को छोड़ कर आप ही ने किया है. मेरे लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि मेरे पापा एक नामी एस.पी. हैं पर न तो इस वजह से मैं ने किसी पर रौब गांठा है अगर मेरी कही बातें आप लोगों को गलत लगी हों तो मैं हाथ जोड़ कर आप सभी से माफी मांगती हूं.’

सहसा तालियों की आवाज से मैं वर्तमान में आ गई, मैं ने देखा कि समधीजी हमारे बीच खड़े हुए थे. उन्होंने आगे बढ़ कर खुशबू के सिर पर हाथ रखा, ‘‘बेटी, तू धन्य है. मुझे गर्व है कि ऐसे परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ गया है जहां इतने अच्छे विचारों वाली लड़की रहती है. मैं ने सब सुन लिया है और यह मेरा वादा है कि आज से तुम्हारी सास इस घर में होने वाले हर मांगलिक कार्य में सब से पहले भाग लेंगी और यथायोग्य आशीर्वाद भी देंगी.’’

इस तरह उस दिन के बाद से मैं विधवा तो थी पर वैधव्य के कष्ट से मुझे मुक्ति मिल गई. मेरी ननद पर खुशबू की बातों  का ऐसा असर हुआ कि वह अगले दिन ही पहली गाड़ी से अपनी ससुराल रवाना हो गईं.

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