फिर वह कमली से बोले, ‘जाओ कमली, संगीता को ले आओ.’
यह सुन कर एकदम सन्नाटा छा गया. तभी जाती हुई कमली को रोकते हुए सौरभ भाई बोले, ‘ठहरो, कमली, संगीता कहीं नहीं जाएगी. यह सही है कि इन लोगों ने हमें धोखा दिया और हम सब को ठेस पहुंचाई. इस के लिए इन्हें सजा भी मिलनी चाहिए, और सजा यह होगी कि आज के बाद इन से हमारा कोई संबंध नहीं होगा. परंतु इस में संगीता की कोई गलती नहीं है, क्योंकि उस की मानसिक दशा तो ऐसी है ही नहीं कि वह इन बातों को समझ सके.
‘परंतु मैं ने तो अपने पूरे होशोहवास में मनप्राण से उसे पत्नी स्वीकारा है. अग्नि को साक्षी मान कर हर दुखसुख में साथ निभाने का प्रण किया है. कहते हैं जन्म, शादी और मृत्यु सब पहले से तय होते हैं. अगर ऐसा है तो यही सही, संगीता जैसी भी है अब मेरे साथ ही रहेगी. मैं अपने सभी परिजनों से हाथ जोड़ कर विनती करता हूं
कि मुझे मेरे जीवनपथ से विचलित न करें क्योंकि मेरा निर्णय अटल है.’
सौरभ भाई के स्वभाव से हम सब वाकिफ थे. वह जो कहते उसे पूरा करने में कोई कसर न छोड़ते, इसलिए एकाएक ही मानो सभी को सांप सूंघ गया.
संगीता भाभी के मातापिता सौरभ भाई को लाखों आशीष देते चले गए. बाकी वहां मौजूद सभी नातेरिश्तेदारों में से किसीकिसी ने सौरभ भाई को सनकी, बेवकूफ और पागल आदि विशेषणों से विभूषित किया और धीरेधीरे चलते बने. आजकल किसी के पास इतना वक्त ही कहां होता है कि किसी की व्यक्तिगत बातों और समस्याओं में अपना कीमती वक्त गंवाए.