लीलाबाई ने जिस लड़की को उस के पास भेजा था, उस की खूबसूरती देख कर ग्राहक गोविंदराम दंग रह गया था और बोला, ‘‘तुम चांद से भी ज्यादा खूबसूरत हो?

‘‘ठीक है, ठीक है. तारीफ करने का समय नहीं है. मैं एक धंधे वाली हूं और धंधे वाली ही रहूंगी. आप कितनी भी तारीफ कर लो.’’

‘‘लगता है, तुम कोठे पर अपनी मरजी से नहीं आई हो?’’ गोविंदराम ने सवाल पूछा.

‘‘देखिए मिस्टर, फालतू सवाल  मत पूछो.’’

‘‘ठीक है नहीं पूछूंगा, मगर मैं नाम तो जान सकता हूं तुम्हारा?’’

‘‘आप को नाम से क्या है? लीलाबाई ने जिस काम से भेजा है, वह करो और भागो.’’

‘‘फिर भी मैं तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं.’’

‘‘मेरा नाम जमना है.’’

‘‘क्या तुम अब भी शादी करने की इच्छा रखती हो?’’

‘‘अब कौन करेगा मुझ से शादी?’’

‘‘अगर कोई तुम से शादी करने को तैयार हो तो शादी कर लोगी?’’

‘‘मैं इन मर्दों को अच्छी तरह से जानती हूं. ये सब केवल औरत के जिस्म से खेल कर इस गंदगी में धकेलना जानते हैं.’’

‘‘तुम्हें मर्दों से इतनी नफरत क्यों?’’

‘‘मगर आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं? आप अभी धंधे वाली के पास हैं. आप अपना काम कीजिए और यहां से जाइए.’’

‘‘मैं ने अभी तुम से कहा था कि अगर कोई शादी करने को तैयार हो जाए, क्या तब तुम तैयार हो जाओगी?’’

‘‘ऐसा कौन बदनसीब होगा, जो मुझ से शादी करने को तैयार होगा?’’

‘‘क्या तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार हो?’’ कह कर गोविंदराम ने अपना फैसला सुना दिया.

यह सुन कर जमना हैरान रह गई और बोली, ‘‘आप करेंगे?’’

‘‘हां, तुम्हें यकीन नहीं है?’’

‘‘मैं कैसे यकीन कर सकती हूं... दरअसल, मुझे मर्द जात पर ही भरोसा नहीं रहा.’’

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