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सुधा एक नेक इनसान की बात न टाल सकी. घर आ कर उन्होंने पूछा, ‘‘माजरा क्या है नीता?’’

‘‘ये क्या बताएंगी मैं आप को बताती हूं,’’ सुधा बोली.

‘‘शादी के दिन से ही आप की बेटी ससुराल में नहीं रहना चाहती थी. वह अपनी हर इच्छा नरेश पर लादती रहती और उस के मना करने पर आत्महत्या की धमकी देती. बेचारा नरेश क्या करता, चुपचाप सबकुछ सहन करता. यह हर बात अपनी मम्मी को बताती और आप की पत्नी अपनी बेटी टीना को उल्टी शिक्षा देतीं. ताकि बेटी को ससुराल में रह कर कुछ न करना पड़े.’’

‘‘यह सच नहीं है,’’ नीता बोली.

‘‘तो आप ही बात दीजिए सच क्या है?’’ नरेश तीखे स्वर में बोला.

‘‘मेरे बेटे को वश में करने के लिए ये मांबेटी किसी बाबा से अनुष्ठान करवा रही हैं. विश्वास न हो तो खुद चल कर देख लीजिए. हम स्वयं उस बाबा से मिल कर आ रहे हैं, सुधा बोली.’’

‘‘क्या यह सच है?’’ पापा ने पूछा.

‘‘यह क्या जवाब देंगी. इस ने तो एक पल को भी अपनी ससुराल को अपना घर नहीं समझा. इस में इस का भी क्या दोष? इसे अपनी मां से शिक्षा ही ऐसी मिली थी. अब अपनी बेटी को आप अपने ही पास रखिए. इस से न इसे तकलीफ होगी न इस की मम्मी को. मेरे बेटे को भी इन की ज्यादतियों से मुक्ति मिल जाएगी. इस एक साल में हमारे बेटे ने क्या कुछ न सहा... क्या सुख मिला इसे शादी का. ससुराल के नाम से ही चिढ़ है टीना को, बेचारा छिपा कर सब बातें अपनी मां को बताता रहा. मेरे समझाने पर उस ने टीना की, हर नाजायज बात स्वीकार कर ली. मुझे उम्मीद थी कि टीना को एक दिन अपनी गलती का एहसास जरूर होगा पर वह दिन देखना शायद हम लोगों की किस्मत में नहीं था.हम जा रहे हैं. आप अपनी बेटी को अपने पास रखिए. अगर हम इस की हरकतों से तंग आ कर इसे वापस मायके भेजते तो किसी को हमारी बात का यकीन न होता. सब हमें ही दोषी ठहराते. आज सबकुछ आप अपनी आंखों से देख सकते हैं,’’ नरेश के पापा बोले.ॉ

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