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देविका ने सोचना शुरू किया. दिल और दिमाग में एक द्वंद्व चल रहा था पर दिमाग पर दिल हावी हो गया और देविका ने प्यार को चुना. पापा ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा कि आज से उन लोगों का देविका से कोई वास्ता नहीं रह गया है और वे दोनों इसी समय उन के घर से निकल जाएं.

कोई रास्ता न देख कर देविका और रजनीश ने आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. रजनीश की पोस्टिंग गाजियाबाद के बैंक में थी, इसलिए बैंक के पास के ही एक महल्ले में 2 कमरों का मकान किराए पर ले लिया. उन के मकान के पास एक दीप्ति नाम की विधवा औरत अपने 4 साल के इकलौते बेटे शान के साथ रहती थी. उन के पति पुलिस में थे और एक दंगे के दौरान शहीद हो गए थे.

दीप्ति और देविका की मुलाकात अकसर मौर्निंग वाक के दौरान होती. देविका बड़े अच्छे सलीके से पेश आती थी दीप्ति से और फिर दोनों दोस्त बन गईं.

देविका और रजनीश दोनो के घर वालों ने उन से अपना नाता तोड़ रखा था जिस की खलिश उन दोनों के मन में हमेशा बनी रहती थी. देविका का शोधकार्य पूरा हो चुका था और उस ने विश्वविद्यालय में प्रवक्ता की नौकरी के लिए आवेदन भी कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद देविका का इंटरव्यू हुआ और उसे नौकरी पर रख लिया गया.

दोनों की शादी को 3 साल पूरे होने को आए थे कि देविका गर्भवती हो गई, हालांकि वह अभी बच्चा नहीं चाहती थी फिर भी दोनों ने पहले बच्चे को जन्म देने का फैसला कर लिया.

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