दीप्ति की सास को यह सुन कर अच्छा तो नहीं लगा पर वह कुछ नहीं बोली और उस ने घर आ कर यह बात जब दीप्ति के ससुर से कही तो वे भी अपना अनुभव बताने लगे कि जब वे सुबह पार्क में टहलने गए थे तब राजेश भी उन से कुछ इसी तरह की बातें कर रहे थे. अब समाज में रहना है तो उस के अनुसार चलना भी तो पड़ेगा ही.
सास ने दीप्ति से कहा कि वे जानते हैं कि उस के आचरण में कहीं कोई कमी नहीं है और उन्हें दीप्ति पर पूरा भरोसा है, लेकिन परी और रजनीश से दूरी बना कर रखने का समय आ गया है.
दीप्ति बहुत कुछ कहना चाहती थी, मगर कह न सकी क्योंकि उसे पता था कि कुछ तो लोग कहेंगे जैसी बातें फिल्मों में तो अच्छी लगती हैं पर असल जिंदगी में तो एक विधवा को मरते दम तक इम्तिहान ही देते रहना पड़ता है. विधवा का कोई अस्तित्व नहीं.
उधर विधुर रजनीश को भी लोग फिर से शादी करने की सलाह देते और उस के न मानने पर कहते कि इधरउधर मुंह मारने से तो अच्छा होता है कि एक ही खूंटे से बंध कर रहा जाए.
लोगों के तानों के आगे 2 सालों तक परी को जो प्यार उस की दीप्ति आंटी से मिल रहा था वह आज बंद हो गया था. रजनीश के सामने फिर से वही बच्ची को पालने वाली समस्या आ रही थी. अब उस के सामने 2 ही रास्ते थे- पहला कि वह दूसरी शादी कर ले और दूसरा यह कि वह परी को बोर्डिंग स्कूल में डाल दे.