लेखिका-रिजवाना बानो ‘इकरा’
‘‘हम्म... मुझे लगता था कि तेरे पास बंगला है, गाड़ी है, पैसा है, सब है तो तू तो बहुत खुश होगी. लेकिन जब अंकल ने बताया कि तुम साल में एक ही बार पीहर आती हो, तो कुछ खटका सा हुआ. सब ठीक है न चंचल? तुम बिजी रहती हो, इसीलिए कम आ पाती हो न घर?‘‘
अब बारी चंचल की थी, ‘‘हां, बिजी तो रहती हूं. 2 बच्चे, सासससुर, जेठजेठानी और पतिदेव. उस पर से इतनी बड़ी कोठी. कहां समय मिलता है?‘‘
चंचल की आंखों का शून्य, लेकिन आकांक्षा पढ़ चुकी थी, ‘‘और जौब...? तुझे तो अपनी आजादी बहुत पसंद थी. जौब क्यों नहीं की तुम ने?‘‘
‘‘शिशिर...‘‘
‘‘शिशिर? तुम ने बात की थी न शादी से पहले ही उस से तो...? फिर क्या बात हुई?‘‘
‘‘हां, की थी, लेकिन मांजी को पसंद नहीं और शिशिर भी मां का कहा नहीं टाल सकते. सो, अब सुहाना और आशु ही जौब है मेरी,‘‘ मुसकराते हुए चंचल बोली.
‘‘हम्म...तू खुश है?‘‘
‘‘हां बहुत, सबकुछ तो है मेरे पास, किस बात की कमी है?‘‘
तभी भाई का फोन आ गया, ‘‘दीदी, आशु आप को ढ़ूंढ़ रहा है तब से. रोरो कर बुरा हाल कर लिया है अपना. आप आ जाइए, जल्दी.‘‘
‘‘ओह्ह, आई मैं बस. तब तक उसे तुम किंडर जौय दिला लाओ. थोड़ा ध्यान भटकेगा उस का. मैं पहुंच ही रही हूं बस,‘‘ फोन डिस्कनैक्ट होने के साथ ही चंचल उठ खड़ी हुई.
‘‘निकलना होगा अक्कू मुझे. आशु रो रहा है. आते वक्त नाना के साथ खेलने में इतना बिजी था कि मैं ने डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा.‘‘
‘‘अच्छा सुन, फोन करना... और मिलती भी रहना अब, बिजी मैडम,‘‘ गले लगाते हुए आकांक्षा ने बोला.