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पापा की बात सुन कर नानी और मौसी का मुंह जरा सा रह गया. पापा को इतनी गंभीर मुद्रा में उन्होंने पहली बार देखा था. चूंकि दोनों के घर दिल्ली में ही थे सो वे उसी समय भनभनाती हुई अपने घर चली गईं पर पापा की बात सुन कर मेरी आंखों में बिजली सी कौंध गई. आज मैं 21वर्ष की होने को आई थी पर मैं ने पापा का इतना रौद्ररूप कभी नहीं देखा था.

हमारे घर में बस मां और उस के परिवार वालों का ही बोलबाला था. मां कालेज में प्रोफैसर थीं और बहुत लोकप्रिय भी. नानी और मौसी के जाने के साथ ही पापा ने तेजी से भड़ाक की आवाज के साथ दरवाजा बंद कर दिया और मेरी ओर मुड़ कर बोले, ‘‘अरे पीहू तुम अभी यहीं बैठी हो, कुछ हलका बना लो भूख लगी है.’’

पापा की आवाज सुन कर मुझ कुछ होश आया और मैं वर्तमान में लौटी- फटाफट खिचड़ी बना कर अचार, पापड़ और दही के साथ डाइनिंगटेबल पर लगा कर आ कर बैठ गई.

पापा जैसे ही डाइनिंगरूम में आए तो सब से पहले मेरे सिर पर वात्सल्य से हाथ फेरा

और प्यार से बोले, ‘‘बेटा, तुम्हारी मां हमें अनायास छोड़ कर चली गई. 21 साल की उम्र विवाह की नहीं होती. मैं चाहता हूं कि तुम आत्मनिर्भर बनो ताकि जीवन में कभी भी खुद को आर्थिक रूप से कमजोर न समझ. एक स्त्री के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना बेहद आवश्यक है क्योंकि आर्थिक आत्मनिर्भरता से आत्मविश्वास आता है और आत्मविश्वास से विश्वास जो आप को किसी भी अनुचित कार्य का प्रतिरोध करने का साहस प्रदान करता है. कल से ही अपनी पढ़ाई शुरू कर दो क्योंकि 2 माह बाद ही तुम्हारी परीक्षा है और जीवन में कुछ बनो. क्यों ठीक कह रहा हूं न मैं?’’ मुझे चुप बैठा देख कर पापा ने कहा.

‘‘जी,’’ पापा की बातें मेरे कानों में पड़ जरूर रहीं थीं परंतु मैं तो पापा को ही देखे ही जा रही थी. उन का ऐसा व्यक्तित्व, ऐसे उत्तम विचारों से तो मेरा आज पहली बार ही परिचय हो रहा था. मैं ने जब से होश संभाला था घर में मम्मी के मायके वालों का ही आधिपत्य पाया था. पापा बहुत ही कम बोलते थे पर पापा जब आज इतना बोल रहे थे तो मम्मी के सामने क्यों नहीं बोलते थे, क्यों घर में नानीमौसी का इतना हस्तक्षेप था? क्यों मम्मी पापा की जगह नानी और मौसी को अधिक तरजीह देती थीं और उन के अनुसार ही चलती थीं? क्यों पापा की घर में कोई वैल्यू नहीं थी? इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर जानना मेरे लिए अभी भी शेष था.

उस रात तो मैं सो गई थी पर फिर अगले दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर मैं ने साहस जुटा कर पापा से दबे स्वर में पूछा, ‘‘पापा जहां तक मुझे पता है आप और मम्मी की लव मैरिज हुई थी फिर बाद में ऐसा क्या हुआ कि आप और मम्मी इतने दूर हो गए कि मम्मी ने सूसाइड करने की कोशिश की?’’

मेरी बात सुन कर पापा कुछ देर शांत रहे, फिर मानो मम्मी के खयालों में खो से गए. अपनी आंखों की कोरों में आए आंसुओं को पोंछ कर वे बोले, ‘‘हम तुम्हारी मां के घर में किराएदार थे. मेरे पापा यूनिवर्सिटी में क्लर्क थे तो उन के पापा उसी यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर. हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. सो अकसर नोट्स का आदानप्रदान करते रहते थे. बस तभी नोट्स के साथ ही एकदूसरे को दिल दे बैठे हम दोनों. वह पढ़ने में होशियार थी और मैं बेहद औसत पर प्यार कहां बुद्धिमान, गरीब, अमीर, जातिपात और धर्म देखता है. प्यार तो बस प्यार है. एक सुखद एहसास है जिसे बयां नहीं किया जा सकता है बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है और इस एहसास को हम दोनों ही बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे थे. एमए करने के बाद तुम्हारी मम्मी पीएचडी कर के कालेज में प्रोफैसर बनी तो मैं बैंक में क्लर्क.

‘‘हम दोनों ही बड़े खुश थे. बस अब मातापिता की परमीशन से विवाह करना था पर जैसे ही हमारे परिवार वालों को पता चला तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया क्योंकि तुम्हारी मां सिंधी और मैं तमिल था. 3 साल तक हम दोनों ने अपनेअपने परिवार को मनाने की भरपूर कोशिश की पर जब दूरदूर तक बात बनते नहीं दिखाई दी तो एक दिन घर से भाग कर हम दोनों ने पहले कोर्ट और फिर मंदिर में शादी कर ली. तुम्हारी मम्मी के घर में एक अविवाहित बड़ी बहन और मां ही थी सो उन्होंने तो कुछ समय बाद ही हमें स्वीकार कर लिया पर मेरे घर वाले अत्यधिक जातिवादी और संकीर्ण मानसिकता के कट्टर धार्मिक थे इसलिए उन्होंने कभी माफ नहीं किया और शादी वाले दिन से ही हमेशा के लिए हम से सारे रिश्ते समाप्त कर लिए. उन्होंने अपना तबादला तमिलनाडु के ही रामेशवरम में करवा लिया और सदा के लिए यह शहर छोड़ कर चले गए.’’

‘‘इतने प्यार के बाद भी मम्मी…’’ पापा मानो मेरे अगले प्रश्न को सम?ा गए थे सो बोले, ‘‘विवाह के बाद जब तक हम भोपाल में थे तो सब कुछ ठीकठाक था. हम सुखपूर्वक अपना जीवनयापन कर रहे थे. उस समय तू 8 साल की थी जब तुम्हारी मम्मी का तबादला दिल्ली हुआ तो मैंने भी अपना ट्रांसफर करवा लिया. तुम्हारी मम्मी का मायका था दिल्ली सो वे बहुत खुश थीं. दिल्ली शिफ्ट होने के बाद तुम्हारी नानी और मौसी का आना जाना बहुत बढ गया था.

‘‘तुम्हारी मम्मी को उन पर बहुत भरोसा था. उन दोनों के जीने का तरीका एकदम भिन्न था. शापिंग करना, होटलिंग, किटी पार्टियां करना, बड़ेबड़े लोंगों से मेलजोल बढाना जैसे शाही शौक उन लोंगों ने पाल रखे थे. तुम्हारी मां बहुत भोली थी. वे कालेज में प्रोफैसर थी और मोटी तनख्वाह की मालकिन भी. इसीलिए ये दोनों उन्हें हमेशा अपने साथ रखतीं थी क्योंकि तुम्हारी मम्मी उनके सारे खर्चे उठाने में सक्षम थीं. एक बार जब मैं ने समझने का प्रयास किया.

‘‘अनु हमारे घर में इन लोंगों का इतना हस्तक्षेप अच्छा नहीं है. ये घर मेरा और तुम्हारा है तो इसे हम ही अपने विवेक से चलाएंगे न कि दूसरों की राय से. पर मेरी बात सुन कर वह उलटे मुझ पर ही बरस पड़ी कि देखो सुदेश तुम्हारे अपने परिवार वालों ने तो हम से किनारा ही कर लिया है. अब मेरे घर वाले तो आएंगेजाएंगे ही ये ही लोग तो हमारा संबल हैं यहां. मैं अपनी मांबहन के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकती. दीदी की शादी नहीं हुई है और मां को पापा की नाममात्र की पैंशन मिलती है अब तुम ही बताओ मैं उन के लिए नहीं करूंगी तो कौन करेगा?

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