रात्रिके अंधेरे को चीरती हुई शताब्दी ऐक्सप्रैस अपनी तीव्र गति से बढ़ती जा रही थी. इसी के ए.सी. कोच ए वन में सफर कर रही पीहू के दिल की धड़कनें भी शताब्दी ऐक्सप्रैस की गति की तरह तेजी से चल रही थीं.
‘‘कैसे होंगे पापा? डाक्टरों ने क्या कहा होगा? मुझे पापा को अपने पास ही ले आना चाहिए था. पापा ने मुझे कभी क्यों नहीं बताया अपनी बीमारी के बारे में? पापा मेरी जिम्मेदारी हैं. मैं इतनी गैरजिम्मेदार कैसे हो गई? मैं क्यों स्वयं में ही इतना खो गई कि पापा के बारे में सोच ही नहीं पाईं,’’ सोचते वह बेचैन से खिड़की से बाहर झंकने लगी.
अहमद उसेबहुत अच्छी तरह जानता था सो उस के मानसिक अंतर्द्वंद्व को भांप कर उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘पीहू इस हालत में इतनी परेशान मत होओ हम सुबह तक पापा के पास होंगे. इस तरह तो तुम अपना बीपी ही बढ़ा लोगी और एक नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. फिर न तुम खुद को संभाल पाओगी और न ही पापा को, इसलिए स्वयं को थोड़ा सा शांत रखने की कोशिश करो.’’
‘‘हां तुम ठीक कह रहे हो,’’ कह कर पीहू ने सीट पर अपना सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. पर इंसान की फितरत होती है कि विषम परिस्थितियों में वह कितना भी शांत होने का प्रयास करे पर अशांति उस का पीछा नहीं छोड़ती. सो न चाहते हुए भी वह अपने प्यारे पापा के पास पहुंच गई. आखिर पापा उस के जीवन की सब से कीमती धरोहर हैं अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कैसे जी पाएगी. यों भी पापा का प्यार उसे बहुत समय के बाद मिला है. अभीअभी तो वह पापा के प्यार को महसूस करने लगी थी कि वे बीमार हो गए. कल ही तो उस के पड़ोस में रहने वाले अंकल ने फोन पर बताया, ‘‘बेटी पापा को बीमारी के चलते अस्पताल में भरती करवाया है.’’
सूचना मिलते ही वह पति अहमद के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ी थी. 10 साल पहले कैसे उस ने मम्मी की असामयिक मृत्यु के बाद अपने लिए पहली बार पापा की आवाज सुनी थी. उसे आज भी याद है मम्मी की 13वीं पर जब पहली बार घर में सभी एकत्रित हुए थे और शाम को जब सभी नातेरिश्तेदार चले गए थे तब मौसी ने नानी की ओर देखते हुए कहा था, ‘‘मां कुछ दिनों पहले पीहू के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आया था. अनु को पसंद भी था पर जब तक वह कोई निर्णय ले पाती उस से पहले ही इस संसार से चली गई.’’
‘‘कहां से? कौन है? अगर जम गया तो मैं अगले शुभ मुहूर्त में ही इस के हाथ पीले कर दूंगी. मेरा क्या भरोसा कब ऊपर वाले के यहां का बुलावा आ जाए.
यह जिम्मेदारी पूरी कर दूं तो मैं शांति से मर तो पाऊंगी,’’ नानी ने मौसी की बात का उत्तर देते हुए कहा.
‘‘लड़का और उस का परिवार वर्षों से दुबई में रहता है. वहां उन का जमाजमाया बिजनैस है. अच्छेखासे पैसे वाले खानदानी परिवार का इकलौता लड़का है. बस उम्र अपनी पीहू से थोड़ी ज्यादा है. यहां उस की मौसी रहती हैं उन्हीं के जरीए यह रिश्ता मेरे पास आया है. उम्र देख लो यदि जम रही है तो इस से अच्छा रिश्ता नहीं हो सकता. अपनी पीहू 21 की है और लड़का 30 का है.’’
‘‘ठीक है 9-10 साल का अंतर तो चलता है. वैसे भी कम्मो सारी चीजें थोड़े ही मिलती हैं. हम ने कौन सी नौकरी करानी है जो उम्र के पीछे इतना अच्छा रिश्ता हाथ से जाने दें. इस के हाथ पीले हो जाएं तो मैं चैन से मर सकूंगी वरना मेरी लाड़ली तो कुंआरी ही रह जाएगी,’’ नानी ने पीहू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
‘‘पीहू तू बोल, तुझे तो कोई परेशानी नहीं है न? अगर तेरी इस रिश्ते में रुचि है तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?’’ मौसी ने मुझ से पूछा परंतु मैं कुछ बोल पाती उस से पहले ही पापा बोल उठे, ‘‘मुझे परेशानी है, मेरी बेटी कोई अनाथ नहीं है जो आप लोग उस के भविष्य का निर्धारण करेंगी. उस का पिता अभी जिंदा है. अभी उस की विवाह की नहीं कैरियर बनाने की उम्र है. आप सब से विनम्र अनुरोध है कि हमें अकेला छोड़ दें. आप ने हमारी बहुत मदद की उस के लिए शुक्रिया परंतु अब हमें आप की मदद की लेशमात्र भी आवश्यकता नहीं है,’’ पापा का अब तक का भरा हुआ गुबार मानो फूट पड़ा.
‘‘अरे देखो तो अनु के जाते ही इस की जवान निकल आई. आज तक इस के परिवार को संभाले रहे हम. अनु तो पिछले 1 माह से बीमार थी. हम सब अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़े रहे और अब यह…’’ मौसी और नानी दोनों ने अपनी वाणी के तीखे वाणों से पापा पर कठोर प्रहार सा कर दिया.
मगर पापा बिना किसी की परवाह किए अनवरत बोलते जा रहे थे, ‘‘मेरे साथ तो आप ने आज तक कोई रिश्ता निभाया ही नहीं तो आगे क्या निभाएंगी. आप ने हमेशा अपनी बेटी से ही वास्ता रखा. अब आप की बेटी इस संसार से चली गई तो इस घर से भी आप का रिश्ता समाप्त. अपनी बेटी के रहते मेरा घरसंसार आप का ही था. मैं तो सिर्फ एक मेहमान था. अब यह घर और बेटी मेरी है. इस से जुड़े सभी फैसले अब सिर्फ मैं ही लूंगा. आप लोग भी अपनाअपना घर देखें. अपनी पत्नी से मैं बहुत प्यार करता था इसलिए आप को भी अपने घर में सहन कर रहा था.
वैसे भी आप ने तो मेरे गृहस्थ जीवन को बरबाद कर ही दिया. पैसे के लिए कोई कैसे अपनी बेटी और बहन की जिंदगी तबाह करता है यह मैं ने केवल पत्रपत्रिकाओं में पढ़ा और टीवी सीरियल्स में देखा ही था और हमेशा इसे अतिशयोक्ति मानता रहा परंतु आप लोगों को देख कर यकीन भी कर पाया कि सच में इस समाज में सबकुछ संभव है. अब आप लोग हमें हमारे हाल पर छोड़ दें,’’ कहतेकहते भावुक हो कर पापा ने मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए मुझे अपने सीने से लगा लिया.