आज मोनिका 2 महीने की बीमारी की छुट्टी के बाद पहली बार औफिस जा रही थी. मोनिका की देवरानी वंदना ने अपने हाथों से मोनिका के लिए टिफिन तैयार किया था. वह किचन से बाहर आते हुए बोली -
“भाभी, आप का टिफिन,” और मोनिका के करीब पहुंची तो मोनिका उसे गले लगा लिया. मोनिका की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. उस के मानस पटल पर अतीत की यादें किसी चलचित्र की भांति अंकित होने लगीं.
छोटे से गांव से मायानगरी मुंबई के पौश इलाके में बहू बन कर आने वाली वंदना के लिए अपननी ससुराल की राह पहले दिन से ही कठिन बन गई थी. शादी के बाद अपनी इकलौती जेठानी के पैर छूने के लिए झुकी तो मोनिका पीछे हटते हुए बोली –
"ओह, व्हाट इज़ दिस? यह किस जमाने में जी रही है, गंवार कहीं की, आजकल कोई पैर छूता है क्या? यह हाईटेक युग है, हाय-हैलो और हग करने का जमाना है. लगता है यह लड़की एजजुकेटेड भी नहीं है."
"फिर तो भाभी से गले मिल लो वंदना," अजित ने हंसते हुए कहा.
वंदना आगे बढ़ी तो मोनिका ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, “बस, बस, दूर से ही नमस्कार कर दो, मैं मान लूंगी."
वंदना दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार कर आगे बढ़ गई थी.
शादी के पहले दिन से ही जेठानी मोनिका का पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. हाईटेक सिटी मुंबई की गलियों में बचपन बिताने वाली मोनिका को किसी ठेठ गांव की लड़की बतौर अपनी देवरानी कतई पसंद नहीं थी. मोनिका ने अपने देवर अजित की शादी अपने मामा की इकलौती बेटी लवलीना से करवाने के लिए बहुत हाथपैर मारे थे परंतु अजित ने उस की एक न सुनी थी.