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विवान की बांहों से छूट कर शैली अभी किचन में घुसी ही थी कि हमेशा की तरह फिर से आ कर विवान ने उसे पीछे से पकड़ गालों को चूम लिया. शैली ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, तो विवान ने उसे और जोर से बांहों में भर लिया. शैली चिढ़ कर बोली, ‘‘छोड़ो न विवान, वैसे भी आज उठने में काफी देर हो गई है. क्या आज औफिस नहीं जाना है?’’

‘‘जाना तो है... रहने दो मैं दोपहर में आ जाऊंगा खाना खाने और इसी बहाने...’’ बात अधूरी छोड़ विवान ने एक और किस शैली के गाल पर जड़ दिया.

किसी तरह अपने को छुड़ाते हुए शैली यह कह कर सब्जी काटने लगी कि कोई जरूरत नहीं है घर आने की... मैं अभी नाश्ता और खाना बना देती हूं.

‘‘तो फिर लाओ मैं सब्जी काट देता हूं, तब तक तुम चाय बनाओ,’’ कह कर विवान ने उस के हाथ से चाकू ले लिया. विवान शैली को दुनिया की हर खुशी देना चाहता था पर वह थी कि बातबात पर उसे झिड़कती रहती थी. हर बात में उस की बुराई निकालना जैसे उस की आदत सी बन गई थी. सोचती कि सब के पतियों जैसा उस का पति क्यों नहीं है? क्यों हमेशा रोमांटिक बना फिरता है. अरे, जिंदगी क्या सिर्फ प्यार से चलती है? और भी तो कई जिम्मेदारियां होती हैं घरगृहस्थी की, पर सावन के अंधे को यह कौन समझाए?

गुस्से से हांफती और जबान से जहर उगलती शैली ने विवान के हाथ से चाकू छीन लिया और फिर सारा गुस्सा सब्जी पर उतारने लगी. उस का मन तो किया कि सब्जी उठा कर कूड़े के डब्बे में फेंक दे और कहे कि कोई जरूरत नहीं है बारबार घर आ कर उसे परेशान करने की. उस का तो मन करता कि कैसे जल्दी विवान औफिस जाए और उस की जान छूटे.

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