‘‘मैं कुछ नहीं जानती. आज मुझे आश्रम जाना है. नाश्ता बना दिया है. दिन का खाना औफिस की कैंटीन में कर लेना या फिर गुरुजी के आश्रम में लंगर करने आ जाना,’’ अनीता ड्रैसिंगटेबल के सामने तैयार होते हुए बोली.
‘‘आज मेरी मीटिंग है. इतना समय नहीं होगा कि मैं लंच के लिए कहीं जा सकूं. मीटिंग कितनी देर चलेगी, कुछ पता नहीं,’’ विनय परेशान होते हुए बोला.
45 वर्षीय अनीता कर्कश स्वभाव की महिला है. हर वक्त लड़ने के मूड में रहती है. फिर चाहे घर हो या बाहर. लड़ने का कोई मौका नहीं चूकती. पति विनय और बेटी नीति उस के सामने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं. पड़ोसी भी उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाते हैं. पूरी कालोनी में लड़ाकिन के नाम से बदनाम है. घर में कोई महरी नहीं टिक पाती. कोई न कोई इलजाम लगा कर महीने 2 महीने में भगा देगी. साल भर बाद फिर कोई नई मिली तो बहलाफुसला कर काम पर रख लेगी और फिर 2-4 महीनों में शक की बिना पर उसे बाहर का रास्ता दिखा देगी. ऐसे एक से बढ़ कर एक विभेष गुण भरे हैं उस में. पैसों को दांत से पकड़े रहती है. क्या मजाल पति की जो उस से पूछे बिना 1 रुपया भी खर्च ले. सुबह औफिस जाते समय गिन कर रुपए देगी और फिर शाम को उन का पूरा हिसाब लेगी. पति सरकारी अफसर है. मगर घर में उस की चपरासी की भी हैसियत नहीं है. पता नहीं अपने शौक कैसे पूरे करता है. शायद कुछ ऊपर की कमाई हो जाती होगी या फिर जिन का औफिस में उस से काम पड़ता होगा वही उस के शौक पूरे कर देते होंगे, क्योंकि जब विनय देर रात फाइवस्टार होटल में डिनर कर घर लौटता है तो अनीता अगली सुबह ही मेरे फ्लैट पर आ जाएगी अपना रोना रोने. बगल के फ्लैट में ही तो रहती है. देर रात की उठापटक से आधी कहानी तो मुझे वैसे ही पता चल जाती है और आधी का रोना वह मुझे सुबहसुबह खुद सुना जाती.