रिया ने नरमी बनाए रखते हुए कहा, ‘‘कैसे हो भैया? अगले महीने रक्षाबंधन है. मैं राखी भेज रही हूं, मिलने पर सूचित करना.’’ रोहित ने कहा मैं ने जब मना किया है, तो फिर फोन क्यों करती हो? बंद करो सब नाटक. मुझे राखी भेजने की कोई जरूरत नहीं है. रोहित ने राखी का तो अपमान किया ही मुझे भी उस ने आड़े हाथों लिया. अपने अपमान से ज्यादा रोहित की हमारे प्रति दर्शायी गई बेरुखी ने रिया को आहत कर दिया. बचपन से ही रिया ऐसी थी कि किसी की क्या मजाल जो हमारे खिलाफ कुछ कह दे. रिया उस से झगड़ पड़ती थी. छोटेबड़े तक का लिहाज नहीं करती थी. हमेशा की तरह वह रोहित से झगड़ पड़ी.
रिया ने मुझे बताया, ‘‘मां भैया में थोड़ा भी बदलाव नहीं आया है, आज भी वह आप की पहले की तरह ही कोसता है.’’
फिर उस ने सारी बातें बताईं. सब कुछ सुन कर मैं रिया पर ही बरस पड़ी, ‘‘ठीक है, रोहित ने कड़वी बातें कहीं, तुम्हें बुरा लगा यह भी जायज है, पर तुम्हें चुपचाप फोन रख देना चाहिए था. तुम ने उसे भलाबुरा क्यों कहा?’’
मैं ने रिया को डांट तो दिया पर सोचने लगी, 1 साल बीत जाने पर भी रोहित का व्यवहार ज्यों का त्यों है. इन सब बातों का असर मेरे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. अब बहुत हो गया. मैं ने रवि से कहा, ‘‘अब वक्त आ गया है कि हमें रोहित के पास जाना ही होगा. आमनेसामने बैठ कर बातें करेंगे तो उस की शिकायतों के भी हम सही जवाब दे पाएंगे.’’
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