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पीछे से जब उस गाड़ी वाले ने हौर्न मारा तो वरुण ने हड़बड़ा कर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी, वरना उसे उस लड़की को घूरने के चक्कर में ध्यान ही नहीं गया कि सिगनल ग्रीन हो चुका है.

“अरे, मुझे तो पता ही नहीं चला कि ग्रीन सिगलन कब हो गया,” झेंपते हुए वरुण बोला, तो स्नेहा ने खा जाने वाली नजरों से उसे ऐसे घूर कर देखा कि वह सकपका गया.

वरुण की हथेली दबा कर उस ने कई बार इशारा भी किया, परंतु बगुले की तरह ध्यान टिकाए वह उस स्कूटी वाली लड़की को घूरे ही जा रहा था, लग रहा था जैसे आंखों से ही उसे चबा जाएगा. बेचारी वह लड़की, कितनी असहज हो रही थी. आप ही सोचिए, आप को कोई एकटक निहारता ही जाए तो कैसा लगेगा? बुरा ही लगेगा न…? तभी तो ग्रीन सिगनल होते ही वह लड़की एकदम से फुर्र हो गई.

“तुम में जरा भी शर्म नाम की चीज नहीं है? मेरी छोड़ो, लेकिन कम से कम लोगों के बारे में तो सोचते, क्या सोचते होंगे वे तुम्हारे बारे में…?

“कैसे सोचोगे, आदत से मजबूर जो हो. सुंदर लड़की देखी नहीं कि… छिः…” अपना पर्स सोफे पर पटकते हुए स्नेहा कमरे में चली गई.

आज उसे सच में बहुत ही बुरा फील हो रहा था. जाने क्या सोचती होगी वह लड़की वरुण के बारे में? जब लाल सिगनल पर गाड़ी रुकी, तो पास खड़ी उस स्कूटी वाली लड़की को वरुण घूरघूर कर देखने लगा… और वह लड़की बारबार कभी अपनी टीशर्ट नीचे खींच रही थी, तो कभी अपने अधखुले पैर को समेट रही थी. मगर ये बेशर्म आदमी… हद है… आखिर ये मर्द इतने छिछोरेटाइप क्यों होते हैं? कहते हैं, आजकल की लड़कियों में संस्कार नाम की चीज नहीं बची. कैसेकैसे कपड़े पहन कर निकल जाती हैं. लेकिन महिलाओं की फटी जींस पर भाषण देने वाले ये पुरुष जब लड़कियों के कपड़े के अंदर ताकझांक करते हैं, तब उन्हें अपने संस्कार याद नहीं आते?

तकिया बिछावन पर पटकते हुए स्नेहा बुदबुदाई, ‘किसी सुंदर लड़की पर नजर पड़ी नहीं कि गिद्ध की तरह उसे ललचाई दृष्टि से देखने लगता है. और तो और सुंदर लड़कियों को देखते ही कौम्पिलीमेंट देने का भी मन होने लगता है इसे. मुझे शर्म आ जाती है, पर इस निर्लज्ज इनसान को जरा भी शर्म नहीं आती. यह भी नहीं सोचता कि उस जगह पर उस की बेटी या बहन भी हो सकती है. वह लड़की भी तो किसी की बेटी या बहन होगी?’

कितना खुश हो कर वह वरुण के साथ घूमने निकली थी. सोचा था कि फिल्म देखने के बाद किसी अच्छे से होटल में खाना खाएगी, फिर ढेर सारी शौपिंग भी करेगी. लेकिन वरुण के व्यवहार से मन क्षुब्ध हो उठा उस का.

“सौरी,” स्नेहा का हाथ पकड़ कर वरुण बोला तो जोर से उस ने उस का हाथ झटक दिया और किचन में आ कर रात के खाने की तैयारी करने लगी.

“स्नेहा, अब माफ भी कर दो न,” अपने कान पकड़ते हुए वरुण बोला, “सच कहता हूं कि मैं उस लड़की को नहीं देख रहा था डार्लिंग, वो तो मैं… अच्छा छोड़ो… देखो, कान पकड़ कर मैं फिर से तुम्हें सौरी बोलता हूं. अब गुस्सा थूक भी दो न, प्लीज.”

लेकिन आज स्नेहा का पारा कुछ ज्यादा ही गरम था, इसलिए माफ करने का तो सवाल ही नहीं उठता.

“खाना रहने दो. चलो बाहर खा कर आते हैं,” वरुण की बात पर स्नेहा का पारा और सातवें आसमान पर चढ़ गया.

“अच्छा, ताकि तुम्हें फिर लड़कियों को घूरने का मौका मिल जाएगा, है न?” चाकू को सब्जी पर पटकती हुई स्नेहा बोली, “मुझे तो समझ नहीं आता कि तुम किस टाइप के इनसान हो? क्योंकि बातें तो तुम बड़ी शराफत की करते हो, लेकिन सुंदरसुंदर लड़कियों व औरतों को देखते ही तुम्हारी सारी शराफत हवा क्यों हो जाती है? और कोई लड़की जरा ‘हाय, हैलो, प्लीज’ क्या बोल देती है, तुम तो उस पर अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार हो जाते हो. लेकिन बीवी जरा एक बैग उठाने को बोल दे तो… नौकर समझ रखा है क्या…? आंखें दिखाते हो. आखिर क्या है उन औरतों में, जो मुझ में नहीं है?” व्यथित होते हुए स्नेहा बोली.

सुंदर स्नेहा बनसंवर कर चाहे कितनी भी सुंदर क्यों न हो जाए, पर रसिया वरुण बाहर की औरतों को ताड़ने से बाज नहीं आता था.

एक युवा बेटी के पिता होने के बाद भी सुंदर महिलाओं को देखना, उस से दोस्ती करना वरुण का पैशन था. उस का सोचना था कि बंदर कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाए, पर गुलाटी मारना कभी नहीं छोड़ता. और मर्द तो साठा में भी पाठा…

वैसे, वरुण को देख कर उस की उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता था, क्योंकि उस ने अपनेआप को खूब अच्छी तरह से मेंटेन कर रखा था.

“बोलो न, क्या सोचने लग गए…? क्या है उन औरतों में, जो मुझ में नहीं है?” स्नेहा ने फिर वही बात दोहराई.

‘‘मेरी जान, कैसे समझाऊं तुम्हें? घर का खाना कितना भी स्वादिष्ठ क्यों न हो, बाहर के खाने की बात ही कुछ और होती है,‘‘ मुसकराते हुए वरुण बुदबुदाया, लेकिन जैसे ही उस की नजर स्नेहा से टकराई, एकदम से मुंह बना लिया.

“ज्यादा मुंह न बनाओ… बता रही हूं मैं. अपनी करनी से खुद तो एक दिन मुसीबत में फंसोगे ही, साथ में हमें भी ले डूबोगे,” बोल कर जिस तरह से उस ने गरम कड़ाही में सब्जी का छौंक लगाया, वरुण को समझते देर नहीं लगी कि अब यहां से खिसक जाने में ही उस की भलाई है. लेकिन यह भी पता है उसे, स्नेहा का गुस्सा एक उबाल के बाद शांत भी हो जाता है. लेकिन ज्यादा फूंक मारो तो और छिटकने लगती है. स्नेहा की यही कमजोरी है, पहले तो वह अपने पति को सिर पर बैठा लेती है, इतना प्यार और केयर करने लगती है कि पूछो मत. लेकिन जब गुस्सा चढ़ता है तो इज्जत भी उतार कर रख देती है. और वरुण उस की इस आदत का खूब अच्छी तरह से फायदा उठाता है.

किचन में झनपटक की आवाज सुन कर वरुण अपने मन में ही सोचने लगा, ‘अब भंवरे भी कभी फूलों से दूर रह सकते हैं भला? वह तो बने ही हैं फूलों के आगेपीछे मंडराने के लिए. मगर स्नेहा यह बात समझती ही नहीं है. सुंदर महिलाओं को देखना, उसे घूरना तो हम पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है, तो कैसे कोई एक नारी ब्रह्मचारी बना रह सकता है? और यह बात एक सर्वे में भी सिद्ध हो चुकी है कि प्रतिदिन महिलाओं को 10 मिनट तक निहारना हम पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. इस से हमारा ब्लडप्रेशर तो नार्मल रहता ही है, दिल की बीमारियों का भी खतरा नहीं होता.

‘तो बताओ, क्यों न घूरें हम महिलाओं को?‘ लेकिन उधर स्नेहा गुस्से से लालपीली हुई यह सोच कर गरम तवे पर रोटी सेंके जा रही थी कि ये मर्दजात कुत्ते की दुम है, कभी सीधी हो ही नहीं सकती. एक युवा बेटी का बाप होते हुए भी ऐसी छिछोरी हरकत करते इसे जरा भी लाज नहीं आती?‘‘

‘हां, हूं मैं एक युवा बेटी का बाप… तो क्या हो गया…? तो क्या मैं अपने सारे अरमान मिट्टी में दफन कर दूं? बाबू मोशाय… जिंदगी तो जीने का नाम है रे… मुरदे क्या खाक जिया करते हैं,’ अपनी सोच पर इतराते हुए वरुण मुसकराया और एक महिला दोस्त से चैटिंग करने लगा. लेकिन जैसे ही स्नेहा के आने की आहट सुनाई पड़ी, फोन बंद कर मुंह बना कर बैठ गया. ऐसी बात नहीं है कि वरुण को अपने परिवार की फिक्र नहीं है. बहुत प्यार करता है वह अपनी बीवीबच्चे से. देशविदेश घुमाना, होटलों में खिलाना, शौपिंग करवाना, सब करता है अपने परिवार के लिए. कभीकभी स्नेहा ही उकता जाती है, कहती कि उस की अलमारी कपड़ों से अटी पड़ी है, क्या करेगी वह और कपड़े खरीद कर. लेकिन वरुण कहता है, इनसान को फैशन के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए. वरुण का फंडा है, बीवी की हर जरूरतें पूरी करते रहो, उस का मुंह अपनेआप बंद हो जाएगा. उस का मानना है कि बाहर वाली को पटाना है, तो पहले घरवाली को खुश रखो.

“चलो, खाना बन गया है,” बोल कर स्नेहा कमरे में पड़े सुबह के जूठे कप उठाते हुए भुनभुनाते हुए बोली, “यहां लोगों को जरा भी शर्म नहीं है कि चाय पी कर कम से कम जूठा कप तो बेसिन में ही रख आएं,’ स्नेहा का इशारा वरुण की तरफ था. लेकिन आज उसे चुप रहने में ही अपनी भलाई लगी, सो उठ कर वह सीधे जा कर टेबल पर बैठ गया.

‘कहा भी गया है कि एक चुप सौ सुख. इसलिए सुख पाना है तो चुप रहो बेटा,’ मन में बुदबुदाते हुए वरुण मुसकराया, जो स्नेहा ने देख लिया.

“आह… बड़ी चवन्नी मुसकान निकल रही है,” वरुण की प्लेट में गरम रोटियां डालते हुए स्नेहा भन्नाई, “सुधर जाओ, नहीं तो बता रही हूं, तुम्हारा यही हाल रहा तो मायके चली जाऊंगी,” स्नेहा सिर्फ बोलती है, पर वरुण जानता है कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगी. और वह यह भी जानता है कि वह कभी नहीं सुधरने वाला क्योंकि सुंदरसुंदर महिलाओं को छोटेछोटे कपड़ों में देख कर… ‘उफ्फ’ जाने उसे कैसा होने लगता है. उन की मनमोहक खुशबू में डूब जाना चाहता है वह. उन के रेशमी बालों में उलझउलझ जाना चाहता है.

“खा क्यों नहीं रहे? फिर कोई सपना देखने लग गए क्या?” स्नेहा ने टोका, तो वरुण घबरा कर रोटियां तोड़ने लगा. चाहे कितनी भी लड़ाई हो जाए उन के बीच, पर स्नेहा वरुण का वैसे ही खयाल रखती है.
वरुण के लिए गरम खाना, धुले और प्रेस किए हुए कपड़े उस की हर जरूरत का सामान स्नेहा की पहली प्राथमिकता होती है और यह बात वरुण भी अच्छी तरह जानता है कि स्नेहा उस की पसंदनापसंद का कितना खयाल रखती है. स्नेहा भी समझती है कि वरुण इतनी मेहनत अपने परिवार के लिए ही तो करता है. उन की हर सुखसुविधाओं का कितना खयाल रखता है वह. कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देता.. परंतु उस की एकदो आदतें स्नेहा को बिलकुल पसंद नहीं हैं. एक तो सुंदर औरतों के पीछे भागना और दूसरा शराब पीना. कितना समझाया है कि शराब सेहत के लिए हानिकारक है, बल्कि औरतों को घूरना भी सेहत के लिए कम हानिकारक नहीं है, क्योंकि अगर किसी महिला ने जा कर उस के खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज करा दिया तो पुलिस के डंडे तो पड़ेंगे ही, नाम भी बदनाम हो जाएगा. मगर वरुण समझता ही नहीं.

 

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