हमें बात जम गई अरशद को पैसे ट्रांसफर कर दिए और खुद हमें भी आरटीओ औफिस के चक्कर लगाने पड़े. फिर भी पूरे 2 महीने लगे थे डीएल के आने में पर मजाल है कि हम इन 2 महीनों में घर पर निठल्ले बैठे रहे हों पर इन दिनों में तो अरशद हमें एक बहुत शानदार कार ड्राइविंग स्कूल ले गया जहां पर एक हौलनुमा कमरे में ही ‘कार सिम्युलेटर’ की ट्रेनिंग दी जाती थी. दरअसल, यह एक वीडियो गेम की तरह था जिस पर सीखने वाला व्यक्ति अपने हाथ में स्टेयरिंग पकड़ कर अपने सामने लगी स्क्रीन पर देखते हुए एकदम रोड पर गाड़ी चलाने जैसे माहौल में गाड़ी सीखता है. इतना ही नहीं बल्कि गाड़ी के टकरा जाने पर आप से पैसा भी लिया जाता है, न जाने कितनी बार तो हमें फाइन भरना पड़ा.
अब हमारा ड्राइविंग लाइसैंस भी बन कर आ गया था भले ही उस पर अभी लर्नर होने की कुछ पाबंदियां थीं पर हमें तो पाबंदियां तोड़ने में ही मजा आता है इसलिए हम अरशद के साथ जा कर वैदिकी इंटर कालेज वाली फील्ड में पहले ही गाड़ी चलाना सीख रहे थे ताकि लाइसैंस आने पर हम तुरंत ही सड़क पर जा कर बिंदास गाड़ी चला सकें.
भाई चाबी लगा कर कैसे क्लच को दबा कर पहला गियर डाल कर गाड़ी आगे बढ़ानी और उस के बाद धीरे से दूसरे गियर में कैसे आना है यह तो बखूबी समझ लिया था हम ने और अब जा कर ही पहली बार समझ आया था कि कार सिर्फ गोलगोल स्टीयरिंग व्हील से नहीं चलाई जाती बल्कि गाड़ी चलाने में बाकायदा ए, बी और सी अर्थात ऐक्सीलेटर, ब्रेक और क्लच का यूज किया जाता है. मुझे याद आता कि गाड़ी न जाने कितनी बार झटके ले कर बंद हुई थी.
कई बार तो अरशद को भी कोफ्त हुई लेकिन हम ने भी सुन रखा था कि गिरते हैं शहसवार ही मैदान जंग में... सो हम लगे रहे और एक बार गाड़ी आगे बढ़ी तो बस हमारी समझ में आ गया कि गाड़ी को दूसरे से तीसरे गियर में कैसे लाना है.