लेखक- किशोर
नेहरू प्लेस से राजीव चौक का करीब आधे घंटे का मैट्रो का सफर कुछ ज्यादा रुहानी हो गया है. अब यह मैट्रो स्टेशन रात को भी सपने में नजर आता है. क्यों नहीं आएगा? यहीं मैं ने उसे पहली बार देखा था. देखा क्या? पहली नजर में उस से प्यार करने लगा. पता नहीं कि यह मेरा प्यार है या महज आकर्षण. पहला दिन, दूसरा दिन और फिर शुरू हो गया आनेजाने का सिलसिला.
स्टेशन पर जब वह नजर आती तो मेरा दिल उछलने लगता. अगर नहीं दिखती तो एकदम उदास हो जाता. पूरे 24 घंटे उस की तसवीर मेरी आंखों के इर्दगिर्द घूमती रहती. एक सवाल मुझे परेशान करता रहता कि क्या उस की किसी और से दोस्ती है? रोजाना यही सोच कर जाता कि आज तो दिल की बात उस से कह ही दूंगा, लेकिन उस के सामने आते ही मेरी घिग्घी बंध जाती. मुझे उस से कभी एकांत में मिलने का मौका ही नहीं मिला.
देखने में तो वह मुझ से बस 2-3 साल ही छोटी लगती. उस पर नीली जींस और लाल टौप खूब फबता. कभीकभी तो वह सलवारकुरते में भी बेहद खूबसूरत नजर आती. उस के बौब कट बाल और कानों में बड़ेबड़े झुमके, काला चश्मा, हलका मेकअप उस की सादगी को बयान करते. मैं उस की इसी सादगी का कायल
हो गया था. मैट्रो में पूरे सफर के दौरान मेरी नजरें उसी के चेहरे पर टिकी रहतीं.
मैं सोचता, ‘कैसी लड़की है? मेरी तरफ देखती तक नहीं,‘ फिर दिल को किसी तरह तसल्ली दे देता. फिर सोचता कि कभी तो उसे तरस आएगा.
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