‘‘सुनो वह पौलिसी वाली अटैची तो लाना, जरा... रीमा सुन रही हो?’’ विवेक ने बैठक से पत्नी को आवाज लगाई.
‘‘क्या कह रहे हो... मुझे किचन में कुकर की सीटी के बीच कुछ सुनाई नहीं दिया. फिर से कहो,’’ रीमा अपने गीले हाथों को तौलिए से पोंछतेपोंछते ही बैठक में आ गई.
‘‘वह अटैची देना, जिस में बीमे की फाइलें रखी हैं... वैसे तुम कहीं भी रहो, कोई न कोई तुम्हें देख कर सीटी जरूर बजा देता है,’’ विवेक पत्नी को देख मुसकराते हुए बोला.
‘‘फालतू की बातें न करो. वैसे ही कितना काम पड़ा है... तुम्हें यह काम भी अभी करना था,’’ रीमा झुंझला पड़ी.
‘‘यह काम भी तो जरूरी है, जो पौलिसी मैच्योर हो रही है उस का क्लेम ले लूंगा.’’
‘‘तो सुनो कोई हौलिडे पैक लें? कहीं घूमने चलते हैं.’’
‘‘और रिनी की शादी का क्या प्लान है तुम्हारा?’’ रीमा की बात सुन विवेक ने पूछा.
‘‘अभी 22 साल की ही तो हुई है. अभी 2-3 साल और हैं हमारे पास.’’
‘‘उस के बाद कौन सी खजाने की चाबी हाथ लगने वाली है? जो भी पैसा है वह सब पौलिसी, शेयर, एफडी के रूप में बस यही है,’’ विवेक के अटैची खोलते हुए कहा, ‘‘अब चाहे खुद सैकंड हनीमून मना लो या बच्चों का घर बसा दो... 1-2 साल बाद तो रोहन बेटा भी शादी लायक हो जाएगा,’’ विवेक कागजों को उलटतेपलटते बोला, ‘‘अरे हां, कल छोटू भी मिला था जब मैं औफिस से निकल रहा था. बड़ा चुपचुप सा था पहले कितना हंसीमजाक करता था. चलो अच्छा है, उम्र के बढ़ने के साथ थोड़ी समझदारी भी बढ़ गई उस की.’’