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सारिका ने कभी सोचा भी न था कि शादी के बाद उस की जिंदगी इतनी बदल जाएगी. शादी से पहले वह कितनी हंसमुख व मिलनसार थी. उस की न जाने कितनी सहेलियां थीं. किसी भी उत्सव, पार्टी वगैरह में उस के जाते ही जैसे जान आ जाती थी. उस के गीत, चुटकुले, कहकहे और खूबसूरती हरेक को उस के आसपास रहने को मजबूर कर देती थी.

लेकिन अब तो वह ऐसी पार्टियों में जाने से कतराती थी. पर समाज से कट कर भी तो नहीं रहा जा सकता, इसलिए जब कभी मजबूरी में जाती भी तो ऐसी कुछ बातें उस के कानों से टकरा ही जातीं, जो उसे विचलित कर देतीं. जैसे, ‘‘मोहितजी कितने अच्छे और हंसमुख हैं और उन की बीवी… नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती, हर समय उस के तेवर चढ़े रहते हैं.’’

‘‘भई, खूबसूरत भी तो बहुत है. इसी का घमंड होगा,’’ कोई कहती.

‘‘अरे मोहितजी भी किसी से कम हैं क्या? जरा भी घमंड नहीं करते,’’ तुरंत कोई उन की तरफदारी के लिए खड़ा हो जाता.

‘‘मोहितजी किसी से भी हंसतेबोलते नजर आ जाएं तो ऐसे देखती है, जैसे अभी निगाहों से ही भस्म कर देगी और सामने वाले की भी ऐसी बेइज्जती कर देती है कि वह उसे देखता ही रह जाता है,’’ एक और आवाज सारिका की बुराई में उभरी.

‘‘सुना है मोहितजी ने कालेज के किसी मेले में उसे देखा था और फिर ऐसे फिदा हुए कि उस की तलाश में जमीनआसमान एक कर दिए और फिर उसे अपनी दुलहन बना कर ही माने. फिर उस की खूबसूरती के आगे ऐसे झुके कि आज तक सिर झुकाए हुए हैं. वे कहीं फिर से किसी की खूबसूरती के आगे न झुक जाएं, यही सोच कर सारिका सैलाब आने से पहले ही उसे रोक देती है,’’ ऐसी शोख बात पर हर कोई मुसकरा उठता और सारिका मन ही मन कट कर रह जाती.

‘‘बेचारे मोहितजी, कितने शरीफ हैं. हलकी सी मुसकराहट के साथ कितनी शराफत से बात करते हैं. कभी गलत निगाह से नहीं देखते और उन की बीवी… काश, वे मुझे पहले मिल जाते तो इतने शानदार इंसान को मैं अपना बना लेती.’’

‘‘अच्छा, तो अब कोशिश कर लो. तुम भी कम खूबसूरत नहीं हो.’’

‘‘अच्छा… उन की बीवी को देखा है? जान से ही मार डालेगी मुझ को…’’

‘‘हां भई, यह तो ठीक कहती हो तुम. फिर तो हम यही शुभकामनाएं दे सकते हैं कि तुम्हें भी ऐसा ही कोई इंसान मिल जाए.’’

‘‘हां भई, हमारी भी यही कामना है,’’ शरारत भरी आवाज आती.

सारिका धीरे से गरदन मोड़ कर उन की तरफ देखती. फिर मन ही मन उन से कहती, ‘उफ यह कैसी शुभकामनाएं दे रही हो नादान लड़कियों. तुम्हारा भला तो इसी में है कि तुम्हें मोहित जैसा इंसान न मिले.’

मोहित की तारीफ सुन कर सारिका का मुंह कड़वा हो जाता. दोस्त, पड़ोसियों व रिश्तेदारों सभी की यही राय थी कि मोहित अपने नाम के अनुसार हैं. सब को अपने हंसमुख, सरल स्वभाव से आकर्षित करने वाले और सारिका हद से ज्यादा घमंडी, शक्की और बुरा व्यवहार करने वाली महिला है. इस तरह की बातें सारिका के लिए नई नहीं थीं. उसे अकसर इसी तरह की बातें किसी न किसी रूप में सुनने को मिल ही जाती थीं. सब का यही सोचना था कि मोहित एक शरीफ, जिंदादिल इंसान हैं और अपने प्यार के हाथों मजबूर हो कर पत्नी से रिश्ता निभा रहे हैं, वरना सारिका जैसी पत्नी को तो तलाक दे देना चाहिए था. हरेक की हमदर्दी मोहित के साथ थी.

मोहित का बाहरी रूप सारी दुनिया के सामने बहुत प्रभावशाली था पर पत्नी होने के नाते सारिका अच्छी तरह जानती थी कि वे किस तरह के इंसान हैं. अगर बुराई, धोखा, मन के छल और हवस का इंसानी रूप दिया जा सकता तो उस की सूरत मोहित से अलग न होती. हां, यही सोच थी सारिका की अपने पति के बारे में. वह मोहित से नफरत करती थी फिर भी अपनी बेटी के कारण ही उस के साथ रहती थी, क्योंकि वह जानती थी कि मांबाप का अलगाव बच्चों के लिए बहुत दुखदायी होता है. इस से उन का सही विकास नहीं हो पाता. वह अपनी बेटी को सशक्त और सफल इंसान के रूप में देखना चाहती थी.

सारिका के मन में, बातों में कड़वाहट का कारण मोहित ही थे. पहले सारिका उन्हें बहुत अच्छा इंसान मानती थी. उसे याद था कि जब मोहित की तरफ से उस के लिए रिश्ता आया था, तो वह हैरान रह गई थी. उन के दोस्त की बीवी ने जब उस के प्रति मोहित की दीवानगी का बखान किया था तब सारिका ने हैरानी से आईने से पूछा था कि क्या मैं सच में इतनी सुंदर हूं?

मोहित अकेले रहते थे. अपना घर, शानदार नौकरी, कंपनी से मिली गाड़ी. उन के बारे में सारिका के पापा ने अच्छी तरह जानकारी लेने के बाद संतुष्ट हो कर रिश्ते के लिए हां कर दी थी.

और जब बरात सारिका के दरवाजे पर आई तो देखने वाले ‘वाह’ कर उठे. कामदार शेरवानी में मोहित चांद की तरह चमक रहे थे. महिलाओं और लड़कियों में मोहित की स्मार्टनैस के ही चर्चे थे. खूबसूरती में तो सारिका भी कम नहीं थी. इस लुभावनी जोड़ी पर से लोगों की आंखें नहीं हट रही थीं.

शादी के बाद सारिका ने जाना कि वाकई मोहित कमाल के इंसान हैं. वे देखने में तो खूबसूरत थे ही, उन की बातें भी बहुत खूबसूरत होती थीं. यों भी मोहित से पहले सारिका के मन में किसी और का खयाल नहीं आया था, इसलिए जल्दी ही मोहित के प्यार में रचबस कर वह खुद को दुनिया की सब से सुखी पत्नी समझने लगी थी.

घर में ज्यादा काम तो था नहीं. सफाई, बरतन, कपड़ों का काम नौकरानी ही कर जाती थी. मोहित ने तो कहा था कि खाना बनाने वाली भी रख लो, तुम्हें कोई काम करने की जरूरत नहीं, पर सारिका ने रसोई का काम खुद ही संभाल लिया था. मोहित का ध्यान रखना उसे अच्छा लगता था. इस से उस का समय भी आसानी से गुजर जाता, वरना घर में और था ही कौन?

मोहित के मातापिता में जल्दी ही अलगाव हो गया था. उस की मां उसे बचपन में ही पिता के हवाले कर कर किसी पूर्व प्रेमी के साथ चली गई थीं. फिर मोहित की देखभाल नौकरों के हवाले कर दी गई. पत्नी की बेवफाई के दुख ने उस के पिता को नशे का आदी बना दिया, जिस के चलते वे बहुत ही कम समय में दुनिया से चल बसे थे. पर सारिका जानती थी कि मोहित की परवरिश सही तरीके से न होने का प्रभाव उस की जिंदगी में उथलपुथल मचा देगा.

एक बार मोहित के रिश्ते की बहन मिलने आईं, तो सारिका को बहुत अच्छा लगा था. उस ने जोर डाल कर उन्हें रात के खाने तक रोक लिया था. दीदी की 12 साल की बेटी बहुत चुलबुली थी. सारे घर में चहकती फिर रही थी. घर में रौनक सी हो गई थी. मोहित भी दीदी से बातों में व्यस्त थे. फिर दीदी सारिका के पास रसोई में आ गईं और बेटी स्वीटी के कहने पर मोहित उसे छत पर ले गए. उन की हंसी की आवाजें रसोई तक आ रही थीं. कुछ देर बाद सारिका उन्हें बुलाने सीढि़यों पर चढ़ी तो देखा मोहित स्वीटी की कमर में हाथ डाले उस से सट कर खड़े थे. स्वीटी इधरउधर हाथ से इशारा कर के अपनी बात कहने में लगी थी, पर मोहित की आंखें भूखे भेडि़ए की तरह उसे देख रही थीं.

 

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