लेखक- अनीता सक्सेना

गौरव जब सुबह सो कर उठा तो देखा, बड़े पापा गांव जाने को तैयार हो चुके थे. वे गौरव को देखते ही बोले, ‘‘क्यों बरखुरदार, चलोगे गांव और खेत देखने? दीवाली इस बार वहीं मनाएंगे.’’

दादी बोलीं, ‘‘अरे, उस बेचारे को सुबहसुबह क्यों परेशान कर रहा है. थक जाएगा वहां तक आनेजाने में.’’

गौरव हंस कर बोला, ‘‘नहीं दादी, मैं जाऊंगा गांव. मैं तो यहां आया ही इसलिए हूं. मुझे अच्छा लगता है, वहां की हरियाली देखने में और आम के बगीचे घूमने में.’’

‘‘आम तो बेटा इस मौसम में नहीं होंगे, हां, खेतों में गेहूं की फसल लगी मिलेगी. दीवाली पर नई फसल आती है न.’’

‘‘तब फिर चाय पी कर और नाश्ता कर के जाना,’’ दादी बोलीं.

‘‘अच्छा गौरव, तुम्हारे यहां दीवाली कैसे मनाई जाती है?’’ बड़े पापा ने पूछा. ताईजी तब तक सब के लिए चाय ले आई थीं, वे भी वहीं बैठ गईं.

‘‘दीवाली तो हम सब क्लब में मनाते हैं, लेकिन बड़े पापा अमेरिका में एक त्योहार सब मिल कर मनाते हैं, वह है हैलोवीन डे.’’

‘‘अच्छा, हमें भी तो बताओ क्या है हैलोवीन?’’ सौरभ भी निकल कर बाहर आ गया. ताईजी ने उसे भी चाय दी.

गौरव बोला, ‘‘जिस तरह हमारे देश में दीवाली का त्योहार मनाया जाता है उसी तरह अमेरिका में 31 अक्तूबर की रात को हैलोवीन का त्योहार मनाया जाता है. इस को मनाने की तैयारी भी दीवाली की तरह कई दिन पहले से शुरू कर दी जाती है.’’

‘‘अच्छा, यह क्या अमेरिका में ही मनाया जाता है?’’ दादी ने पूछा.

‘‘नहीं दादी, हैलोवीन डे आयरलैंड गणराज्य, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित समस्त पश्चिमी देशों में मनाया जाता है. कहा जाता है कि बुरी आत्माओं को घरों से दूर रखने के लिए इसे मनाया जाता है इसलिए लोग कई दिन पहले से ही घर के बाहर एक बड़ा सा कद्दू ला कर रख देते हैं साथ ही घर के बाहर चुड़ैल, भूत, झाड़ू, मकड़ी और मकड़ी के जाले आदि खिलौने रख देते हैं.’’

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