लेखिका- परबंत सिंह मैहरी
बात उन दिनों की है, जब मेरी जवानी उछाल मार रही थी. मैं ने ‘शहर के मशहूर समाजसेवी श्रीश्री डालरिया मल ने सभा की अध्यक्षता की...’ जैसी रिपोर्टिंग करतेकरते आगरा से निकलने वाली एडल्ट मैगजीन ‘मचलती जवानी’ के लिए भी लिखना शुरू कर दिया था. यह ‘मचलती जवानी’ ही मेरे पाप की जड़ है. एक दिन ‘मचलती जवानी’ के संपादक रसीले लाल राजदार की एक ऐसी चिट्ठी आई, जिस ने मेरी दुनिया ही बदल डाली.
उस चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, ‘रहते हैं ऐसे महानगर में, जो सोनागाछी और बहू बाजार के लिए सारे देश मशहूर हैं, और आप हैं कि दमदार तसवीरें तक नहीं भिजवा सकते. भेजिए, भेजिए... अच्छी रकम दिलवा दूंगा प्रकाशक से.’
कैमरा खरीदने के लिए मैं ने सेठजी से कहा कि कुछ पैसे दे दें. यह सुन कर सेठ डालरिया मल ‘होहो’ कर हंसे थे और शाम तक मैं एक अच्छे से कैमरे का मालिक बन गया था.
बहू बाजार की खोली नंबर 34 में एक नई लड़की सीमा आई थी. चेहरा किसी बंबइया हीरोइन से कम न था. एक दिन सीमा नहाधो कर मुंह में पान रख अपने अधसूखे बालों को धीरेधीरे सुलझा रही थी, तभी मैं उस की खोली में जा धमका.
सीमा ने तुरंत दरवाजा बंद कर सिटकिनी लगा दी और बोली, ‘‘मेरा नाम सीमा है. आप अंदर आइए, बैठिए.’’ मैं पलंग पर बैठते हुए बोला, ‘‘देखो, मैं कुछ करनेधरने नहीं आया हूं. बात यह है कि...’’ ‘‘बेवकूफकहीं के... आज मेरी बोहनी खराब कर दी. चल, निकल यहां से,’’ सीमा चीखते हुए बोली थी.
मैं हकबका गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. मैं बोला, ‘‘मैं तुम्हारी बोहनी कहां खराब कर रहा हूं? लो ये रुपए.’’
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