लेखिका- रमेश चंद्र छबीला
राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.
सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’
‘‘नमस्ते...’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’
‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.
कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं... कहीं गई हैं क्या?’’
‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’
‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’
‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.
‘‘सुनो सलोनी...’’
‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.
राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.
सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.
राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.
राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.
सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.
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