हमारे पिछले रिलेशन के बारे में कुछ न बता कर, हम ने एकदूसरे का परिचय सब के सामने रखा. वरुण, प्रतीक से हाथ मिलाते हुए बातें करने लगे और मैं प्रतीक की पत्नी नंदा से बातें करने लगी. थोड़ी देर में ही पता चल गया कि वह कितनी तेजतरार्र औरत है. बस अपनी ही हांके जा रही थी और बीचबीच में मेरे हाथों में डायमंड जड़ी चूडि़यां भी निहारे जा रही थी.
कुछ देर बाद जैसे ही हम चलने को हुए, अपनी आदत के अनुसार वरुण कहने लगे, ‘‘अब ऐसे सिर्फ हायहैलो से काम नहीं चलेगा. परसों क्रिसमस की छुट्टी है. आप सब हमारे घर खाने पर आमंत्रित हैं.’’ प्रतीक के न करने पर वरुण ने उस की एक न सुनी. मुझे वरुण पर गुस्सा भी आ रहा था. क्या जरूरत थी तुरंत किसी को अपने घर बुलाने की? प्रतीक मुझे देखने लगा, क्योंकि मुझे पता था वह भी मेरे घर नहीं आना चाह रहा होगा. पर वरुण को कौन समझाए. मजबूरन मुझे भी कहना पड़ा, ‘‘आओ न बैठ कर बातें करेंगे.’’
याद करना तो दूर, अब प्रतीक कभी भूलेबिसरे भी मेरे खयालों में नहीं आता था. पर आज अचानक उसे देख जाने मेरे मन को क्या हो गया. वरुण ने अपने फोन नंबर के साथ घर का पता भी प्रतीक को मैसेज कर दिया.
रास्ते भर मैं प्रतीक और उस की फैमिली के बारे में सोचती रही. मां ने ही तो बताया था मुझे. मेरे बाद प्रतीक के लिए कितने रिश्ते आए और कुंडली न मिलने के कारण लौट गए. हां, यह भी बताया था मां ने कि प्रतीक की जिस लड़की से शादी तय हुई है उस से प्रतीक के 28 गुणों का मिलान हुआ है. लेकिन प्रतीक और उस की पत्नी को देख कर लग नहीं रहा था कि दोनों के एक भी गुण मिल रहे हों. खैर, मुझे क्या. माना हमारा रिश्ता न हो पाया पर वरुण जैसा इतना प्यार करने वाला पति तो पाया न मैं ने.