ज्योति को इतने बरसों बाद एकाएक सामने देख कर मैं हैरान हो उठी. उस ने मुझे जतिन की शादी की बधाई दी.
‘‘मैं काफी समय से विदेश में थी. अभी कुछ समय पूर्व ही इंडिया लौटी हूं. जतिन की शादी की बात सुनी तो बेहद खुशी हुई. आप को बधाई देने के लिए मैं खुद को न रोक सकी, इसीलिए आप के पास चली आई. ये कुछ खत हैं, अब ये आप की अमानत हैं. आप इन का जो करना चाहें करें, मैं चलती हूं.’’
‘‘अरे, कुछ देर तो बैठो… चाय वगैरह…’’ मैं कहती ही रह गई पर वह उठ कर खड़ी हो गई.
‘‘बस, आप को भी तो कालेज जाना होगा,’’ कह कर तेज कदमों से चल दी.
उस के जाने के बाद मैं ने खतों पर सरसरी निगाह डाली तो चौंक उठी. वे जतिन द्वारा ज्योति के नाम लिखे प्रेमपत्र थे. शुरू के 1-2 पत्र पढ़ कर मैं ने सब उठा कर रख दिए. कालेज में आएदिन ऐसे प्रेमपत्र पकड़े जाते थे, इसीलिए ऐसे पत्रों में मेरी कोई रुचि नहीं रह गई थी. पर चूंकि जतिन की लिखावट थी, इसलिए मैं ने 1-2 पत्र पढ़ लिए थे. उन से
ही मुझे प्रेम की गहराई का काफी कुछ अनुमान हो गया था. आश्चर्य था तो इस बात पर कि जतिन ने कभी मुझ से इस बारे में कुछ कहा क्यों नहीं?
कालेज में भी मेरा मन नहीं लगा. बारबार ज्योति का चेहरा आंखों के आगे घूमने लगा. वह पहले से भी ज्यादा आकर्षक लगी थी. सुंदरता में आत्मविश्वास के पुट ने उस के व्यक्तित्व को एक ओज और गरिमा प्रदान कर दी थी. यह मेधावी छात्रा कभी मेरी प्रिय छात्राओं में से एक थी, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैं इसे नापसंद करने लगी. इसी कालेज में पढ़ने वाले अपने बेटे के संग मैं ने इसे 2-3 बार देख लिया था.
जतिन, मेरा बेटा हमेशा मेरी कमजोरी रहा है. सुधीर के निधन के बाद से तो मैं उसी के लिए जी रही हूं. अपनी प्रिय वस्तु के छिन जाने का भय मुझ पर हावी होने लगा. अपने चैंबर में ज्योति को बुला कर अकेले में मैं ने उसे डांट दिया था.
‘‘तुम कालेज में पढ़ने आती हो या अपनी खूबसूरती और प्रतिभा का प्रदर्शन कर उसे भुनाने? अपनी पढ़ाई से मतलब रखो, वरना कालेज से निकाल दी जाओगी. मैं तुम्हारा बैकग्राउंड अच्छी तरह जानती हूं. एक बार शिकायत घर चली गई तो कहीं की नहीं रहोगी. नाऊ गेट लौस्ट,’’ उस समय प्रिंसिपल के कड़क मुखौटे के पीछे मैं एक आशंकित मां का चेहरा छिपाने में सफल हो गई थी.
ज्योति ने फिर कभी मुझे शिकायत का मौका नहीं दिया. मैं आश्वस्त हो गई थी. जतिन को अवश्य मैं ने कुछ दिनों परेशान देखा था पर फिर परीक्षाएं नजदीक देख कर वह भी पढ़ाई में रम गया था. मैं ने राहत की सांस ली थी. डिग्री मिलते ही अपने रसूखों से मैं ने उस की नौकरी लगवा दी. फिर संजना जैसी सुंदर और सुशील कन्या से उस का विवाह भी करा दिया.
फिर भी जतिन ने एक बार भी ज्योति का जिक्र नहीं किया. जतिन और संजना का वैवाहिक जीवन हंसीखुशी चल रहा था. उन के विवाह को 2 वर्ष होने वाले थे. पिछली बार जतिन ने जब मुझे मेरे दादी बनने की खबर सुनाई थी तो मैं खुशी से उछल पड़ी थी. संजना पर आशीर्वाद और हिदायतों की झड़ी लगा दी थी मैं ने.
वे दोनों मेरे पास आने वाले थे. सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था और यह बीच में ज्योति जाने कहां से टपक पड़ी. वह भी जतिन के लिखे प्रेमपत्र ले कर. क्या चाहती है यह लड़की? ब्लैकमेल करना? तो फिर पत्र मुझे क्यों दिए? हो सकता है जेरौक्स कौपी हो उस के पास. यह भी हो सकता है कि जतिन की शादी का पता चला हो तब यह किस्सा ही खत्म कर देना चाहती हो. अगर ऐसा होता तो फिर खुद ही जला देती. जतिन को भी लौटा सकती थी. नहींनहीं, वहां तो संजना है.
आखिर, उस का क्या मंतव्य हो सकता है? शायद मेरी निगाहों में खुद को बेकुसूर साबित करना चाहती हो कि आप का बेटा मुझे प्यार करता था और खत लिखता था, मेरा कोई कुसूर नहीं था.
अनुत्तरित प्रश्नों की गूंज ने मुझे बेचैन कर दिया था. कभी मन करता खतों को जला डालूं. कभी मन करता इन्हें जतिन को दिखा कर पूछूं कि इन में कितनी सचाई थी? यदि उस का प्यार सच्चा था तो उस ने उस का इस तरह गला क्यों घोंटा? मेरे सभी प्रश्नों का जवाब जतिन ही दे सकता था. फोन पर पूछना संभव नहीं था. मैं उस के आने की राह देखने लगी.
जतिन आया मगर मुझे उसे खत दिखाने और बात करने का मौका नहीं मिल रहा था, जबकि उन के लौटने के दिन नजदीक आते जा रहे थे. मुझे बहू के लिए साड़ी और कुछ सामान खरीदने थे. जतिन से कहा तो उस ने हाथ खींच लिए.
‘‘मां, यह काम मेरे बस का नहीं है. आप दोनों हो आइए. मैं तब तक अपना कुछ काम कर लेता हूं.’’
मुझे उस की बात ठीक लगी. लौटते वक्त मैं ने अचानक गाड़ी रुकवाई, ‘‘संजना बेटी, मुझे यहीं उतार दो. मैं रिकशा कर के घर चली जाती हूं और खाने वगैरह की तैयारी कर लेती हूं. तुम तब तक नत्थू की दुकान से अपनी पसंद की मिठाई, नमकीन बंधवा लाओ और हां, थोड़े फल भी ले आना.’’
संजना ने मुझे उतार कर गाड़ी घुमा ली. मैं घर पहुंची तो जतिन चौंक पड़ा, ‘‘क्या हुआ मां, तुम अकेली कैसे आईं? तबीयत तो ठीक है न? संजना कहां है?’’
‘‘आ रही है नुक्कड़ से मिठाई ले कर. मुझे तुम से अकेले में कुछ जरूरी बात करनी थी,’’ कह कर मैं जल्दीजल्दी जा कर अपनी अलमारी से कपड़ों की तरह के नीचे दबे खत ले आई और जतिन के सामने रख दिए. पत्र देख कर वह सकपका गया.
‘‘ये आप के पास कैसे आए?’’ उस ने साहस कर के पूछा.
‘‘जाहिर सी बात है, ज्योति दे कर गई है. बहुत प्यार करते थे न तुम उस से? प्रेमपत्र लिखने का साहस था, शादी करने का नहीं? मुझ से कहने का भी नहीं?’’
‘‘ऐसी बात नहीं थी मां. मैं तो उसी से शादी करना चाहता था…’’
‘‘फिर?’’ पूछते हुए मैं मन ही मन कांप उठी. कहीं ज्योति ने डांट और धमकी की बात जतिन को तो नहीं बता दी थी? उस वक्त मुझे कहां पता था कि मेरा अपना ही सिक्का खोटा है.
‘‘वैसे मां ज्योेति कैसी लगती है तुम्हें?’’ जतिन अब तक सामान्य हो चला था पर अब चौंकने की बारी मेरी थी.
‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? कैसी ऊलजलूल बातें कर रहे हो तुम?’’ मैं गुस्से से बोली.
‘‘ओह मां, आप गलत समझ रही हैं. खैर, आप का भी दोष नहीं है. मैं आप को शुरू से सारी बातें बताता हूं. मैं कालेज के दिनों से ही ज्योति को पसंद करने लगा था. लेकिन वह मेरे बारे में क्या सोचती है, यह नहीं जान पाया.
मैं ने उसे खत लिखे पर उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मुझे उस की आंखों में अपने लिए प्यार नजर आता था, लेकिन न जाने क्यों वह मुझ से कतराती थी. फिर मुझे समझ आया वह आप से यानी अपनी प्रिंसिपल से खौफ खाती थी, इसलिए उन के बेटे से प्यार करने की जुर्रत नहीं कर पा रही थी. मैं अकेले में उस से मिला. समझाया कि मां से डरने की जरूरत नहीं है. हम वक्त आने पर अपने प्यार का इजहार करेंगे और वे शादी के लिए मान जाएंगी. वह कुछ आश्वस्त हुई थी, पर फिर न जाने क्या हुआ, उस ने अचानक मुझ से मिलना बंद कर दिया. सामने भी पड़ जाती तो कतरा कर निकल जाती. मैं परेशान हो उठा. आखिर एक दिन मैं ने उसे पकड़ लिया…’’