हम ने अभी 2 माह पहले ही अपने इस नए घर में शिफ्ट किया है. विनय के औफिस में उन दिनों काम बहुत था. कुछ विदेशी क्लाइंट आए हुए थे, इसलिए वे सुबह जल्दी ही घर से निकल जाते और उन के वापस आने का भी कोई समय तय नहीं रहता था.
अंकित के स्कूल की छुट्टियां चल रही थीं, इसलिए मैं पूरा दिन घर को सजानेसंवारने और सामान को सैट करने में जुटी रहती. दिन कब बीत जाता कुछ पता ही नहीं लगता. अभी यहां कोई कामवाली बाई भी नहीं मिली, जो मेरी कुछ मदद ही कर देती.
भीड़भाड़ वाले शहर से दूर यह नया बस रहा सैक्टर है. इक्कादुक्का कोठियों में ही लोग रह रहे हैं. ज्यादातर घर अभी बन ही रहे हैं. आसपड़ोस में कोई है ही नहीं. दूरदूर जो इक्कादुक्का कोठियां आबाद भी हैं, उन में रहने वालों से जानपहचान करने का अभी समय ही नहीं मिला.
वैसे हम भी इतनी जल्दी इस सुनसान सी जगह में शिफ्ट नहीं करना चाहते थे, लेकिन एक तो अपने नए बने घर का शौक दूसरा हम जिस किराए के घर में रह रहे थे उस का लीज टाइम खत्म हो चुका था, इसलिए हम ने यहीं आना तय कर लिया.
उस दिन मैं किचन में क्रौकरी, बरतन, दालों के डब्बे आदि लगाने में व्यस्त थी, तभी बैडरूम से आई जोरदार धमाके की आवाज ने मुझे चौंका दिया. घबराई हुई जब मैं बैडरूम में पहुंची तो वहां का मंजर देख कर मुझे चक्कर सा आ गया. मैं ने तुरंत स्वयं को संभाला क्योंकि यह घबराने का नहीं बल्कि अंकित को संभालने का समय था.