आजकल तो मुझे सपने भी बहुत अजीबअजीब आने लगे हैं. मैं विनय को पुकारती हुई उन के पीछेपीछे भागती हूं पर वे मेरी आवाज ही नहीं सुनते. वे किसी लड़की का हाथ थामे मुझ से आगे तेजतेज कदमों से चलते चले जाते हैं.
कई बार मेरा मन हुआ कि मैं मोनिका के बारे में इन से पूछूं लेकिन कभी कुछ पूछ नहीं पाई. शायद अंदर का डर कुछ कहने और पूछने से रोकता है. डरती हूं, अगर पूछने पर विनय ने वह सब कह दिया, जो मैं सुनना नहीं चाहती तो क्या होगा? तब मैं क्या करूंगी? कहां जाऊंगी? क्या होगा अंकित का? इसलिए सोचती हूं जैसा चल रहा है चलने दूं. पतिपत्नी का रिश्ता तो कांच के बरतन समान होता है. कहीं उस की मजबूती जांचने के चक्कर में उसे स्वयं ही चकनाचूर न कर बैठूं. इसलिए गुस्सा या शिकायत करने की अपेक्षा पहले से कहीं विनय का ध्यान रखने लगी हूं. उन पर ज्यादा प्यार लुटाने लगी हूं ताकि उन के दिल में मोनिका अपनी जगह न बना सके.
मेरा ध्यान भले ही फोन पर मोनिका की आवाज सुन कर भटक गया था, लेकिन मैं निरंतर बेटे को हिम्मत बंधाने और उस के बहते खून को रोकने की कोशिश में लगी थी. अंकित इतना नुकसान हो जाने के डर से सहमा बिना आवाज निकाले दर्द सह रहा था और आंसू बहा रहा था.
अब कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा था तो मैं ने फौरन साथ बन रही कोठी के बाहर खड़े ठेकेदार को आवाज दे कर जल्दी से कोई औटो या टैक्सी ले आने के लिए कहा. मेरी घबराहट देख कर उस ने परेशानी का कारण पूछा तो मैं जल्दी से उसे सब बता कर मदद की गुहार लगाई. वह फौरन वाहन का इंतजाम करने के लिए दौड़ गया.