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‘‘मैं नहीं जाऊंगी. तुम पता नहीं क्यों बारबार मुझे अपने गुरुजी के पास ले जाना चाहते हो जबकि मैं किसी गुरुवुरु के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. अखबारों में और टैलीविजन पर आएदिन अनेक गुरुओं की करतूतों का भंडाफोड़ होता रहता?है,’’ मेनका बोली.

‘‘सभी गुरु एकजैसे नहीं होते. आज मैं ने जब गुरुजी से फोन पर कहा कि आप के दर्शन करना चाहता हूं तो उन्होंने कहा कि मेनका को भी साथ लाना. हम उसे भी आशीर्वाद देना चाहते हैं.’’

‘‘मुझे किसी आशीर्वाद की जरूरत नहीं है. तुम ही चले जाना.’’

‘‘मैं ने गुरुजी को वचन दिया है कि तुम्हें जरूर ले कर आऊंगा. तुम्हें मेरी कसम मेनका, तुम्हें मेरे साथ चलना होगा. अगर इस बार भी तुम मेरे साथ नहीं गईं तो मैं वहीं गंगा में डूब जाऊंगा,’’ अमित ने अपना फैसला सुनाया.

यह सुन कर मेनका कांप कर रह गई. वह जानती थी कि अमित गुरुजी के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुका है. उस पर गुरुजी का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. वह भावुक भी है. अगर वह साथ न गई तो हो सकता है कि गुरुजी अमित को इतना बेइज्जत कर दें कि उस के सामने डूब कर मरने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न बचे.

मेनका को मजबूरी में कहना पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो... मैं तुम्हारे साथ हरिद्वार चलूंगी.’’

अमित के चेहरे पर मुसकान फैल गई, ‘‘यह हुई न बात. मेनका, तुम्हें गुरुजी से मिल कर बहुत अच्छा लगेगा. वहां मुझे, तुम्हें और पिंकी को आशीर्वाद मिलेगा.’’

मेनका ने कोई जवाब नहीं दिया.

एक हफ्ते बाद अमित मेनका और पिंकी के साथ हरिद्वार जा पहुंचा. रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर उस ने एक आटोरिकशा किया और गुरुजी के आश्रम जा पहुंचा. शिष्यों ने उन के लिए एक कमरा खोल दिया.

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