लाजवंती को अपनी पत्नी बना कर शेखर ने सभी रिश्तेदारों के साथसाथ अपने पिता की आशाओं पर भी पानी फेर दिया था, क्योंकि वह तो कब से इस बात की उम्मीद लगाए बैठे थे कि बेटा ज्यों ही प्रशासनिक सेवा में लगेगा उस का विवाह किसी कमिश्नर या सेक्रेटरी की बेटी से कर देंगे. इस से शेखर के साथसाथ सारे परिवार का उद्धार होगा.

दूरदर्शी शेखर के पिता यह भी जानते थे कि बड़े ओहदेदारों से पारिवारिक संबंध बनाना बेटे के भविष्य के लिए भी जरूरी है साथ ही स्थानीय प्रशासन पर भी अच्छा रौबदाब बना रहता है.

उधर भाईबहनों में यह धुन सवार थी कि कब भैया की शादी हो और कब घर को संभालने वाला कोई आए. उन्हें तो यह भी विश्वास था कि भाभी अवश्य ही अलादीन का चिराग ले कर आएंगी.

एक मध्यवर्गीय परिवार के टूटेफूटे स्वप्न...

शेखर जब भी अपनी मौसी या बूआ के घर जाता तो उस का स्वागत एक ही वाक्य से होता, ‘‘बेटे, मैं ने तुम्हारे लिए सर्वगुण संपन्न चांद सी दुलहन ढूंढ़ रखी है. बस, नौकरी ज्वाइन करने का इंतजार है.’’

जीवनसाथी के मामले में शेखर की सोच कुछ और थी. उस ने एक गरीब असहाय लड़की को अपना जीवन- साथी बनाने का निर्णय किया था. चूंकि

लाजवंती उस के सोच के पैमाने पर खरी उतरी थी इसीलिए उस ने उसे अपना जीवनसाथी बनाया. बचपन में ही लाजवंती के पिता का देहांत हो चुका था. घर में एक भाई था और 4 बहनें. अब तक 2 बहनों का विवाह हो चुका था. मां थीं जो ढाल बन कर बच्चों को ऊंचनीच से बचाने के प्रयास में लगी रहतीं. शेखर का विचार था कि दरिद्रता में पली हुई लाजवंती जिंदगी के उतारचढ़ाव से परिचित होगी. भलेबुरे की उसे पहचान होगी.

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